 
                         
                            रामदरश मिश्र
"मेरा साहित्य परिवेश और समय के सत्य से प्रभावित है"
रामदरश मिश्र ने अपनी रचना यात्रा कविता से शुरू की किंतु कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उनकी उपस्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। छठे और सातवें दशक में मिश्र जी का प्रथम कविता संग्रह ‘पथ के गीत’(1951), प्रथम उपन्यास पानी के प्राचीर (1961) और पहला कहानी संग्रह ‘खाली घर’ (1968) प्रकाशित होते हैं। मिश्र जी किसी भी वाद से न जुड़कर अपने समय की चेतना के प्रवाह के साथ स्वतः ही चलते रहे। वे मूलतः अभिशप्त जीवन के पक्षधर लेखक हैं। अतः इनके लेखन में नारी और दलित यातना के अनेक आयाम सहज रूप से मूर्त हुए हैं।
प्रथम कविता संग्रह
 
                                
                                    “पथ के गीत”
 
                                    मिश्र जी शुरू से ही कविताएँ लिखते थे । उन्होंने जब काफी  कविताएँ  लिख ली और उन्हें लगा कि इन कविताओं का स्तर प्रभावशाली हो गया है तो  उन्हें पुस्तकाकार प्रकाशित करने की इच्छा के परिणाम स्वरुप 1951 में ‘पथ के गीत’ कविता-संग्रह आया। यह पहला संग्रह छायावादी प्रभाव के दौर की कविताओं का है। इसीलिए इसका स्वर मुख्यतः रोमानी तो है, किन्तु इसमें मनुष्य के जीवन के साथ-साथ समाज और राष्ट्र की समस्याओं पर भी विचार किया गया है। संग्रह की कविताओं में प्रेम और प्रकृति -राग के स्वरों के साथ-साथ सामजिक और राष्ट्रीय चेतना को भी स्वर मिले हैं।
                                    
                                
प्रथम कहानी संग्रह
 
                                
                                “खाली घर”
  
                                छठे दशक से मिश्र जी कहानी लेखन में  प्रवृत्त हुए और सातवें दशक से गहरे से जुड़ गए ।प्रथम कहानी संग्रह 'खाली घर' (1968) की कहानियाँ गाँव और शहर की जिंदगी के  तनाव, संघर्ष, टूटन-छूटन आदि स्थितियों को चित्रित करने वाली हैं। ‘चिट्ठियों के बीच’, ‘खाली घर’, ‘मंगल यात्रा’,सीमा ,चिट्ठियों के बीच, ‘बादलों भरा दिन’ ‘एक औरत एक जिंदगी’ आदि कहानियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं। उनमें मौत की छाया और सूनेपन की अभिव्यंजना, अंधविश्वासों का खंडन, शहरी जीवन की यांत्रिकता, तनाव, घुटन अबला का सबलापन आदि बहुत मार्मिक ढंग से चित्रित हुए हैं।
                                    
                        
प्रथम उपन्यास
 
                                
                                    “पानी के प्राचीर”
   
                                    मिश्र  जी के लेखन में ग्राम जीवन की प्रधानता रही। जब 'मैला आंचल' प्रकाशित हुआ,तब  उन्हें  लगा कि जिस गांव के यथार्थ को वह फुटकर रूप में अभिव्यक्त कर रहे हैं, उसे समग्र और संश्लिष्ट रूप दिया जा सकता है। परिणाम स्वरुप पानी के प्राचीर (1961)की रचना हुई। यह स्वतंत्रता-पूर्व  से स्वतंत्रता -प्राप्ति  तक के भारतीय गाँव की प्रामाणिक गाथा प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास में गाँव के जीवन के  संश्लिष्ट यथार्थ को बहुत गहराई तथा कलात्मकता  से चित्रित किया गया है।  गाँव की कथा में गीतात्मक लय की उपस्थिति  उपन्यास को काव्यात्मक सांकेतिकता तथा नाटकीय वक्रता प्रदान करती है।
                                    
                            
रामदरश मिश्र
प्रमुख रचनाएँ
“रामदरश मिश्र मूलतः कवि हैं किन्तु इनका लेखन कविता के साथ- साथ सहज भाव से साहित्य की अन्य विधाओं में भी उतरता गया। मिश्रजी ने स्वयं कहा कि- मैं कविता के साथ कहानी में आया फिर उपन्यास में। वैसे तो कविता उनकी केंद्रीय विधा है ही किंतु छठे दशक में वे कथा साहित्य के लेखन से भी जुड़ गए । मिश्र जी ने पानी के प्राचीर, जल टूटता हुआ, अपने लोग, दूसरा घर जैसे बड़े उपन्यास सहित 11 लघु उपन्यास भी लिखे । ‘पानी के प्राचीर’ से लेकर ‘एक था कलाकार’ तक की उपन्यास यात्रा ने उन्हें प्रतिष्ठित उपन्यासकारों की पंक्ति में खड़ा कर दिया । मिश्र जी की कहानियाँ उनके व्यापक अनुभवों की अभिव्यक्ति है। उनका बचपन गाँव में बीता, फिर उच्च शिक्षा तथा नौकरी के संदर्भ में शहर- शहर यात्रा करते रहे,इसलिए उन्हें गांव और शहर दोनों के जीवन यथार्थ की गहरी पहचान है। ‘खाली घर’ से लेकर ‘जिंदगी लौट आई थी’ तक की एक लंबी कहानी यात्रा उन्होंने की है। मिश्र जी ने इन तीन केंद्रीय विधाओं के अतिरिक्त निबंध, संस्मरण, यात्रा -वृतांत, आलोचना, आत्मकथा आदि भी लिखे हैं और इनका अवदान कम महत्वपूर्ण नहीं है । उनकी आत्मकथा ‘सहचर है समय ’हिंदी के श्रेष्ठ आत्मकथाओं में सम्मिलित होती है।”
 
                         
                            आग की हँसी
कविता संग्रह
 
                            जल टूटता हुआ
उपन्यास
"मैं किसी वाद का झंडा लेकर नहीं चला "
“मैं गमले का फूल तो नहीं/कि एक सुरक्षित कमरे से/दूसरे कमरे में रख दिया जाऊँँ/मैं तो पेड़ हूँ एक खास जमीन में उगा हुआ/आँधियाँ आती हैं/लुएँ चलती हैं /ओले गिरते हैं।/पेड़ हहराता है, काँपता है/डालियाँ और फल-फूल टूटते हैं / लेकिन वह हर बार अपने में लौट आता है! मेरा कवि अंतर्राष्ट्रीय बनने के लिए कभी गमले का फूल नहीं बना। मेरा अपना एक देश है, गाँव हैं। जहाँ के रूप, रंग, रस, भूख-प्यास और संघर्ष उसने बीस-पच्चीस वर्ष बहुत गहराई से अपने खून में उतारा है। तो क्या अपने परिवेश को अधिक गहराई और ईमानदारी से पहचान लेना विश्व मानव को पहचान लेना नहीं होता!”
श्रेणी
"नई सूचना"
पद्मश्री सम्मान प्राप्त करने पर हार्दिक बधाई
2025-01-25
डॉ. रामदरश मिश्रा जी को वर्ष 2025 में साहित्य के क्षेत्र में पद्मश्री सम्मान प्राप्त करने पर हार्दिक बधाई! आपकी लेखनी ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है और समाज को प्रेरणा दी है। आपकी सरल भाषा, गहन विचार और मानवीय संवेदनाएं पाठकों के हृदय को छूती हैं। यह सम्मान न केवल आपकी अद्वितीय साहित्यिक साधना का प्रतिफल है, बल्कि पूरे हिंदी साहित्य जगत के लिए गर्व का क्षण है। आपको कोटि-कोटि शुभकामनाएं! 🌹📖
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                            "गुरुवर हजारीप्रसाद द्विवेदी ने मुझे कहा था कि सर्जना ही बड़ा सत्य है।"
समीक्षकों की राय
मीडिया
भेंट वार्ता
उपन्यासः पानी के प्राचीर, जल टूटता हुआ, सूखता हुआ तालाब, अपने लोग, रात का सफर, आकाश की छत, आदिम राग,बिना दरवाजे का मकान, दूसरा घर, थकी हुई सुबह, बीस बरस, परिवार, बचपन भास्कर का, एक बचपन यह भी, एक था कलाकार।
 
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