रामदरश मिश्र
मेरे बारे में...
शताब्दी सहयात्री
प्रारंभिक जीवन
15 अगस्त, 1924 श्रावण पूर्णिमा को गोरखपुर के डुमरी गाँव में रामचन्द्र मिश्र और कंवलपाती मिश्र के तीन पुत्रों में सबसे छोटे पुत्र रामदरश मिश्र का जन्म हुआ । माता पिता की ममतामयी छाया में दोनो बड़े भाइयों स्व॰ राम अवध मिश्र और स्व॰ रामनवल मिश्र और छोटी बहन कमला के साथ स्नेहपूर्ण एवं संघर्षपूर्ण बचपन बीता ।
आपकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के प्राइमरी-मिडिल स्कूल में हुई। उस स्कूल से हिंदी और उर्दू के साथ मिडिल उत्तीर्ण कर 'विशेष योग्यता' की पढ़ाई के लिए गाँव से दस मील दूर ढरसी गाँव में गए। वहाँ पंडित रामगोपाल शुक्ल ‘विशेष योग्यता’ का अध्यापन करते थे, जिसे उत्तीर्ण करने के पश्चात् मिश्र जी ने बरहज से विशारद और साहित्य रत्न की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। तत्पश्चात् अंग्रेजी की पढ़ाई से भी जुड़े तथा 1947 में मैट्रिक के लिए वाराणसी आए और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया वहाँ से इंटरमीडियट, बी.ए., एम.ए.और पीएच.डी. का शोधकार्य संपन्न किया। 1956 में आप गुजरात के एमएस यूनिवर्सिटी बड़ौदा सहित एकाधिक महाविद्यालय सेंट जेवियर महाविद्यालय(अहमदाबाद), एस. बी. जार्ज महाविद्यालय, (नवसारी) में अध्यापन से जुड़े रहे। तदुपरांत 1964 में दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़ गए तथा दिल्ली के स्थायी निवासी बन गए। 1990 में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्ति के बाद तो आपकी लेखनी और परवान चढ़ी तथा रचना सतत् आपका पाथेय बनती गई।


साहित्यिक यात्रा
रामदरश मिश्र ने एक लंबी काव्य-यात्रा की है। यों तो उनका पहला काव्य-संग्रह 'पथ के गीत' 1951 में प्रकाशित हुआ किन्तु उन्होंने कविता लिखनी सन् 1940 के आस-पास ही शुरू कर दी थी। उनकी पहली प्रकाशित कविता है 'चाँद'। यह कविता गोरखपुर से प्रकाशित ' सरयू पारीण' पत्रिका के अंक 6 (जनवरी 1941) में छपी थी। सन् 42 में इन्होंने कवित्त सवैयों में 'चक्रव्यूह' नामक एक खंड काव्य भी लिखा। प्रारंभिक लेखन का यह दौर बिना किसी गहरी साहित्यिक समझ-बूझ के स्वतः स्फूर्त भाव से यों ही चलता रहा। साहित्यिक वातावरण से दूर अपने गाँव के परिवेश में कवि अपने गाँव-गिराँव की प्रकृति और सामाजिक जीवन के कुछ सत्यों को अपनी कैशोर भावुकता के साथ कच्चे ढंग से व्यक्त करता रहा। बनारस जाने पर आप नई कविता तथा नव लेखन के नए आयामों से परिचित हुए तथा 'नई कविता' के पथ अग्रसर हुए। बनारस की साहित्यिक गहमागहमी के उन बीते दिनों को वे आज भी याद करते हैं जहाँ शंभुनाथ सिंह, ठाकुर प्रसाद सिंह, नामवर सिंह, बच्चन सिंह, शिवप्रसाद सिंह, त्रिलोचन जैसे कवियों - लेखकों का एक सुपरिचित समवाय था। 'पथ के गीत' के बाद आपने कविता में अपना रास्ता बदला, नए भावबोध से आपका रचना - संसार जुड़ता गया । 'बैरंग बेनाम चिट्टियाँ' तथा 'पक गई है धूप' में 'नई कविता' का तेवर और स्थापत्य था, जिसका निर्वाह वे आज तक कर रहे हैं। विधाओं से आपका कोई पूर्वाग्रह नहीं है । कविता में आपने डेढ़ दर्जन से ज़्यादा कृतियाँ दीं तो ग़ज़लों के भी कई संग्रह आए। कहना चाहिए कि हिंदी ग़ज़ल को आपने कविता की एक महत्त्वपूर्ण शैली जैसी ही गरिमा दी।
आधुनिकता के आवेग और नई कविता के उन्मेष के बाद आपकी रचना शैली में युगानुरूप बदलाव भी आया है 'विचार कविता' और 'लंबी कविता' का आंदोलन चला तो रामदरश जी उसके सहभागी भी रहे तथा अनेक लंबी कविताएँ भी लिखीं। 'समांतर कहानी', 'सचेतन कहानी' आदि के आंदोलन चले तो उसमें भी शामिल रहे, किंतु आंदोलन तो आते -जाते रहते हैं। आप आंदोलन के बलबूते फूलने फलने वाले लेखक नहीं रहे, अपने बूते अपनी पठनीयता बनाई और व्यापक पाठक - संसार के चहेते लेखक बने। भले ही आप अज्ञेय की सप्तक श्रृंखला के कवि नहीं रहे, किसी संगठन के कवि -विशेष भी नहीं रहे, किंतु आपकी कविताओं की आँच धीरे - धीरे लोगों की चेतना पर पड़ती रही है । रामदरश मिश्र ने सदा प्रगतिशीलता की बाँह गही।
लगभग साठ साल के दिल्ली प्रवास और इससे पहले लगभग 7 साल अहमदाबाद, नवसारी व गुजरात प्रवास के बावजूद आपके भीतर से गाँव नहीं गया। वह बार बार आपकी रचनाओं में आता रहा। इस बात को एक मुक्तक में लिखते हुए आप कहते हैं –
- कविता का घना प्रभाव रहा
- पैसे का सदा अभाव रहा
- रहने को रहा शहर में वह पर उसमें उसका गाँव रहा।
कविता ने उन्हें यश, पुरस्कार, सम्मान बहुत कुछ दिया। सरस्वती सम्मान से पुरस्कृत कृति ‘मैं तो यहाँ हूँ’ की कविता 'आभारी हूँ कविते!' जैसे आपके पूरे कवि जीवन की कृतज्ञता का ज्ञापन है। आप कहते हैं-
- तुमने मुझे कितना कुछ दिया
- मेरी कविते!
- जो बीत गया
- वह भी मुझमें जीवित है तुम्हारे सहारे
- आज के जलते समय में
- मेरा मन पा लेता है कोई घनी छाँह
- मनुष्यता के प्रति मरता हुआ विश्वास
- फिर - फिर जी उठता है
आपकी कविताओं का संसार व्यापक है। जीवन का ऐसा कौन सा रंग होगा जो आपकी कविताओं में उपस्थित न हो। कवि के आत्मसंघर्ष की खुशबू तो इन कविताओं से आती ही है, वसंत, वर्षा, ग्रीष्म और ऋतुओं के सौंदर्यबोध, मानवीय राग- अनुराग, सुख-दुख-उल्लास, बाढ़, आपदा विभीषिका से गुज़रते गाँव-समाज, जीव-निर्जीव सब तरह की इकाइयों से कवि ने अपनी रचनात्मकता का आधार निर्मित किया है। उसमें नए संवत्सर की लय है, जिजीविषा, संघर्ष की दास्तान है तथा स्वाभिमानी मनुष्य तथा शोषण-अन्याय व पक्षपातरहित समाज के निर्माण का स्वप्न और संकल्प है।
लगभग सात दशकों में आपसे शायद ही कोई विधा छूटी हो। विधाओं की पारस्परिकता को आपने न केवल जिया बल्कि ऐसी कोई हदबंदी अपने निकट नहीं बनने दी कि अमुक विधा साहित्य में किसी से कमतर है। सातवें दशक में आप कहानी और उपन्यास रचना की ओर मुड़े तथा 'पानी के प्राचीर'(1961) से कथा की दुनिया में प्रवेश किया। यह आंचलिक उपन्यासों का दौर था। यह उपन्यास आपके कथा - संसार में पहला बड़ा औपन्यासिक हस्तक्षेप माना गया। उसके आठ साल बाद आए उपन्यास 'जल टूटता हुआ' ने आपको कथा लेखन में व्यापक ख्याति दी। जिस आंचलिकता का पथ रेणु जैसे कथाकार पहले ही प्रशस्त कर चुके थे उसे अपने उपन्यासों में रामदरश मिश्र ने एक संगति दी। 'जल टूटता हुआ' इसकी एक जबर्दस्त रचनात्मक परिणति थी। 'अपने लोग' में आपका अपनापन एक ऐसे व्यक्ति के लिए जागता है जो प्रतिभाशाली होते हुए भी उपेक्षा का शिकार बनता है और विक्षिप्ति के कारण विस्मृति के नेपथ्य में डाल दिया जाता है। नवें दशक में गुजरात के अनुभवों पर आया आपका उपन्यास 'दूसरा घर' आपके औपन्यासिक लेखन का एक दूसरा बड़ा मोड़ साबित हुआ। आपके उपन्यासों में मूल्यों की प्रतिष्ठा मिलती है और यह कथानक की कीमत पर नहीं। वक्तव्यों की सूरत में नहीं बल्कि क़िस्सागोई के बहाने सामाजिक-राजनीतिक चारित्रिक पतन पर रोशनी डाली गई है।
'बीच का समय' असुंदर और अशिक्षित पत्नी व पति की कथा है तो 'सूखता हुआ तालाब' अंधविश्वासों से जूझते गाँवों की कहानी है। 'अपने लोग' में व्यवस्था की ज्यादतियों से पागल उमेश के दर्द व प्रगतिशील विचारों के अनुगामी प्रमोद की कहानी कही गई है। प्रमोद यथास्थितिवादिता को तोड़ने की पहल करता है, जिसमें लेखक का अपना चेहरा भी काफी दूर तक पहचाना जा सकता है। 'रात का सफ़र', 'बिना दरवाजे का मकान' एवं 'थकी हुई सुबह' स्त्री जीवन के यथार्थ और संघर्ष की कथा कहते हैं तो बाद के उपन्यासों- 'परिवार', 'बचपन भास्कर का', 'एक बचपन यह भी' , 'एक था कलाकार आदि में पारिवारिक कथाओं को भी विन्यस्त किया गया है। लेखक स्त्री चरित्रों को अपने विचारों से ताकत देता है। आपके उपन्यासों में आए अनेक स्त्री चरित्र- मंजरी (अपने लोग) बदमी, लवंगी (जल टूटता हुआ), दीपा (बिना दरवाजे का मकान), रूपमती (आकाश की छत), लक्ष्मी (थको हुई सुबह),चेतना (एक बचपन यह भी) आदि आपके इस नैतिक समर्थन की गवाही देते हैं।
सामाजिक न्याय के प्रति भी मिश्र जी की लेखनी उदार रही है। आपके दलित पात्रों में न्याय की लड़ाई लड़ने की चेतना दिखती है। 'जल टूटता हुआ' में हरिजनों में यह चेतना मौजूद है जो सामंती शक्तियों से लोहा लेते हैं । 'आकाश की छत' में दलित जन कामरेड जगत की अगुवाई में लामबंद होते हैं। 'बीस बरस' उपन्यास की युवती पढ़ लिख कर अध्यापिका बनती है और सवर्णों की लफंगई को मुँहतोड़ उत्तर देती है। इस तरह तलाश करें तो आपके उपन्यासों - कहानियों में अनेक ऐसे पात्र आते हैं जो समय के साथ अपनी वर्गीय स्थिति के सतर्क और सचेत दिखते हैं। इस तरह रामदरश मिश्र का संपूर्ण लेखन मनुष्यता तथा मनुष्य के प्रति मरते हुए विश्वास को जगाने का उपक्रम है।
रामदरश मिश्र का सर्जनात्मक फलक सुविस्तृत होने के कारण आपके आलोचनात्मक विवेचनात्मक लेखन पर कम ध्यान गया है पर आप साहित्य के विगत सात दशकों के बहुत ही सघन अध्येता रहे हैं तथा समय-समय पर कथा कविता, उपन्यास के परिदृश्य पर अपनी समीक्षात्मक कलम भी चलाई है। विभिन्न विधाओं में रचना करते हुए भी आप हिंदी उपन्यास, हिंदी कहानी, हिंदी कविता, छायावाद व आधुनिक कविता के विभिन्न सर्जनात्मक संदर्भों पर लिखते रहे। आपकी आलोचनात्मक पुस्तकें 'साहित्य, संदर्भ और मूल्य' 'हिंदी उपन्यास एक अंतर्यात्रा', 'हिंदी कहानी अंतरंग पहचान', 'हिंदी कविता आधुनिक आयाम', छायावाद का रचनालोक' व 'आधुनिक कविता : सृजनात्मक संदर्भ आदि हिंदी आलोचना में एक मानक स्थान रखती है।
हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंधों की चारुता ने आपको धीरे-धीरे निबंध के पथ पर भी प्रशस्त किया जिसके फलस्वरूप 'कितने बजे हैं', 'बबूल और कैक्टस', 'घर परिवेश' ,'छोटे छोटे सुख' तथा मैं लौट आया हूँ मेरे देश जैसे संग्रह आए तो आपकी आत्मकथा 'सहचर है समय' 'बच्चन' की आत्मकथा के बाद सर्वाधिक चर्चा में रही। यह समय -समय पर आई आपकी आत्मकथा के कई खंडों - 'जहाँ मैं खड़ा हूँ', 'रोशनी की पगडंडियाँ', 'टूटते बनते दिन', 'उत्तर पथ' व 'फ़ुरसत के दिन' का एकीकृत रूप है। आपके संस्मरणों का तो कहना ही क्या! 'स्मृतियों के छंद', 'अपने अपने रास्ते', 'एक दुनिया अपनी' ,सुरभित स्मृतियाँ तथा 'सर्जना ही बड़ा सत्य है' में आपने अपने समय की अनेक वरेण्य विभूतियों- हजारी प्रसाद द्विवेदी, त्रिलोचन, विद्यानिवास मिश्र, धर्मवीर भारती, ठाकुरप्रसाद सिंह, रघुवीर चौधरी, उमाशंकर जोशी, देवीशंकर अवस्थी, सावित्री सिन्हा, भवानी प्रसाद मिश्र, शमशेर, प्रभाकर माचवे, जैनेंद्र कुमार, गिरिजा कुमार माथुर, विवेकी राय, मदनेश जी और असमय ही विक्षिप्त हो गए प्रतिभाशाली कवि विद्याधर को याद किया तो- विदेशी यात्राओं के अनुभवों को आपने 'घर घर तक' और 'देश यात्रा' में समेटा है । पिछले कुछ वर्षों आप डायरी लेखन भी करते रहे हैं। जो बातें आत्मकथा व संस्मरणों की पकड़ से छूट - छूट जाती रही हैं, वे तमाम घटनाएँ व प्रसंग आपकी डायरियों में आए हैं तथा ऐसी डायरियों के अब तक छः संग्रह आ चुके हैं - 'आते जाते दिन', 'आस - पास', 'बाहर भीतर', 'विश्वास जिंदा है', 'मेरा कमरा' व सुख दुःख के राग । लगभग डेढ़ दर्जन कविता संग्रह, 15 उपन्यास, कई कहानी- संग्रह व प्रभूत गद्यलेखन के रचयिता रामदरश मिश्र की रचनावली 14 खडों में आज से दो दशक पहले आ चुकी है तथा इसमें भी अब तक के लेखन के कई खंड और जुड़ेंगे - जुड़ते रहेंगे।
रामदरश मिश्र बीती और वर्तमान शती के साक्षी रचनाकार हैं। देश - दुनिया की राजनीति, संस्कृति, समाज, कला व साहित्य में होने वाले सतत् बदलावों के दृष्टा रहे तथा साहित्य की अनेक विधाओं में मनुष्य के सुख- दुख की कथा कही। कविता भी तो एक तरह से मानवीय दुख- दर्द की सूक्ष्म कथा ही है क्योंकि कविता का जन्म मूलत : कहानी कहने के लिए ही हुआ था। हमारे पुरा ग्रंथ इसके साक्ष्य हैं। हिंदी को अपनी रचनात्मकता का सत्व- तत्त्व सौंपने वाले रामदरश जी की लेखनी अपने समय के संघर्ष, स्वप्न और सौंदर्य को सतत् रचती रहे, यही कामना है। (डॉ ओम निश्चल)
प्रकाशित कृतियाँ
काव्यः पथ के गीत, बैरंग - बेनाम चिट्ठियाँ, पक गई है धूप, कंधे पर सूरज, दिन एक नदी बन गया, मेरे प्रिय गीत, बाजार को निकले हैं लोग, जुलूस कहाँ जा रहा है ?, रामदरश मिश्र की प्रतिनिधि कविताएँ, आग कुछ नहीं बोलती, शब्द सेतु, बारिश में भीगते बच्चे, हँसी ओठ पर आँखें नम हैं (ग़जल संग्रह), बनाया है मैंने ये घर धीरे- धीरे (ग़ज़ल - संग्रह) ।
उपन्यासः पानी के प्राचीर, जल टूटता हुआ, सूखता हुआ तालाब, अपने लोग, रात का सफ़र, आकाश की छत, आदिम राग, बिना दरवाजे का मकान, दूसरा घर, थकी हुई सुबह, बीस बरस, परिवार, बचपन भास्कर का, एक बचपन यह भी, एक था कलाकार ।
कहानी - संग्रह : खाली घर, एक वह, दिनचर्या, सर्पदंश, बसंत का एक दिन, इकसठ कहानियाँ, मेरी प्रिय कहानियाँ, अपने लिए, अतीत का विष, चर्चित कहानियाँ, श्रेष्ठ आंचलिक कहानियाँ, आज का दिन भी, एक कहानी लगातार, फिर कब आएंगे?, अकेला मकान, विदूषक, दिन के साथ, मेरी कथा यात्रा, विरासत, इस बार होली में, चुनी हुई कहानियाँ, संकलित कहानियाँ, लोकप्रिय कहानियाँ, 21 कहानियाँ, नेता की चादर, स्वप्नभंग, आखिरी चिट्ठी, कुछ यादें बचपन की (बाल साहित्य), इस बार होली में,जिन्दगी लौट आई थी,एक भटकी हुई मुलाकात,सपनों भरे दिन,अभिशप्त लोक,अकेली वह ।
ललित निबंध: कितने बजे हैं, बबूल और कैक्टस, घर - परिवेश, छोटे - छोटे सुख, नया चौराहा, लौट आया हूँ मेरे देश।

आत्मकथा: सहचर है समय।
यात्रावृत्त: घर से घर तक, देश- यात्रा।
डायरी: आते - जाते दिन, आस-पास, बाहर भीतर, विश्वास जिंदा है, सुख दुःख के राग।
आलोचना: हिंदी आलोचना का इतिहास (हिंदी समीक्षा स्वरूप और संदर्भ, हिंदी आलोचना प्रवृत्तियाँ और आधार भूति), ऐतिहासिक उपन्यासकार वृंदावन लाल वर्मा, साहित्य:संदर्भ और मूल्य, हिंदी उपन्यास: एक अंतर्यात्रा, आज का हिंदी साहित्य: संवेदना और दृष्टि, हिंदी कहानी : अंतरंग पहचान, हिंदी कविता: आधुनिक आयाम (छायावादोत्तर हिंदी कविता), छायावाद का रचनालोक, आधुनिक कविता: सर्जनात्मक संदर्भ, हिंदी गद्य साहित्य: उपलब्धि की दिशाएँ, आलोचना का आधुनिक बोध।
रचनावली: 14 खंडों में, कविता समग्र, कहानी समग्र ।
संस्मरण: स्मृतियों के छंद, अपने-अपने रास्ते, एक दुनिया अपनी, सर्जना ही बड़ा सत्य है,सुरभित स्मृतियाँ ।
साक्षात्कार: अंतरंग, मेरे साक्षात्कार, संवाद यात्रा।
संचयन: बूँद - बूँद नदी, नदी बहती है, दर्द की हँसी, सरकंडे की कलम।
आलोचना:
- 1. हिंदी आलोचना का इतिहास (हिंदी समीक्षा: स्वरूप और संदर्भ, हिंदी आलोचना प्रवृत्तियां और आधार भूमि),
- 2. ऐतिहासिक उपन्यासकार वृन्दावन लाल वर्मा,
- 3. साहित्य: संदर्भ और मूल्य,
- 4. हिंदी उपन्यास एक अंतर्यात्रा,
- 5. आज का हिंदी साहित्य संवेदना और दृष्टि,
- 6. हिंदी कहानी: अंतरंग पहचान,
- 7. हिंदी कविता आधुनिक आयाम (छायावादोत्तर हिंदी कविता),
- 8. छायावाद का रचनालोक,
- 9. आधुनिक कविता: सर्जनात्मक संदर्भ,
- 10. हिंदी गद्यसाहित्य: उपलब्धि की दिशाएं,
- 11. आलोचना का आधुनिक बोध|
संस्मरणः
स्मृतियों के छन्द, अपने-अपने रास्ते, एक दुनिया अपनी, सहयात्राएँ, सर्जना ही बड़ा सत्य है,सुरभित स्मृतियाँ ।
- साक्षात्कार: अंतरंग, मेरे साक्षात्कार, संवाद यात्रा|
- संचयनःबूँद बूँद नदी, नदी बहती है, दर्द की हँसी, सरकंडे की कलम।
- रचनावलीः 14 खण्डों में प्रकाशित

अनुवाद :
अंग्रेजी
- 1. The Laughing Flames and other Poems (Poetry) Sahitya Academy (2021) (आग की हँसी)अनुवादक-उमेश कुमार
- 2. Dawn of Red Flames (Novel), Kritika Books, Delhi (2000) (रात का सफर) अनु.- अनिल राजिम वाला
- Modern Hindi Fiction (Criticism), Bansal& Co., Delhi (1983) (हिन्दी उपन्यास: एक अंतर्यात्रा तथा हिन्दी कहानी: अंतरंग पहचान) अनुवादक- डॉ. ए.एन. जौहरी
- 4. The Sky Before Her and Other Short Stories, Radha Publication, Delhi (1998) (चुनी हुई कहानियाँ )अनु. -वाई.एन. निगम
गुजराती
- 1. आगनी हँसी (2021),साहित्यअकादमी , (आग की हँसी) अनुवादक-आलोक गुप्ता
- 2. आदिम राग(Novel) दर्पण प्रकाशन, नडियाद (2006) (आदिम राग)अनु.- डॉ. यशवंत गोस्वामी
- 3. सगा बहालां (Novel)Rangdwar Prakashan, Ahmadabad (1989) (अपने लोग)अनु.- मणिलाल पटेल
- 4. रात नी सफर (Novel)दर्पण प्रकाशन, नडियाद (2006) (रात का सफर) अनु.-डॉ. यशवंत गोस्वामी
- 5. दरवाजा बगरनु मकान (Novel)दर्पण प्रकाशन, नडियाद (2006) (बिना दरवाजे का मकान)अनु.-डॉ. यशवंत गोस्वामी
मराठी
- 1. आगीचं हास्य (आग की हँसी ) साहित्य अकादमी 2022 अनुवाद दिलीप भाउ राव पाटील
कन्नड़
- 1. रात्रिण पयाण (Novel)(रात का सफर) अनु.-जी. चन्द्रशेखर मलयालम
मलयालम
- 1. रात्रिदूल ओस यात्रा (Novel) (रात का सफर) अनु.- डॉ. जयकृष्णन जे
पंजाबी
- 1. आग दी हसी(2021),साहित्य अकादमी ,(आग की हँसी) अनुवादक-अमरजीत कौर
- 2. चोनवींआं कहानी रामदरश मिसरीआं साहित्य अकादेमी पुरस्कृत (रामदरश मिश्र:संकलित कहानियाँ) अनु.- ज़िंदर


अकादमिक एवं साहित्यिक पद
1. अध्यक्ष, भारतीय लेखक संगठन 1984-1990
2. प्रधान सचिव, साहित्यिक संघ, वाराणसी 1952-55
3. अध्यक्ष, गुजरात हिंदी प्राध्यापक परिषद् 1960-64
4. अध्यक्ष, मीमांसा, नई दिल्ली
5. अनेक मंत्रालयों में हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य
6. गुजरात विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी केंद्र के पूर्व प्रभारी प्रोफ़ेसर ( 1959-64 )
7. प्रोफ़ेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय
8. अनेक विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम समिति के सदस्य
9. साहित्य अकादेमी, हिंदी अकादमी, दिल्ली तथा अनेक विश्वविद्यालयों तथा प्रतिष्ठित संस्थानों की संगोष्ठियों की अध्यक्षता
10. कई पत्रिकाओं के सलाहकार संपादक
11. अध्यक्ष प्रबंध समिति, राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय (1999-2000 )
योगदान
प्राय: सभी भारतीय भाषाओं में मिश्र जी की कविताओं और कहानियों के अनुवाद हुए हैं। उनकी रचनाएं विभिन्न स्तरों के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जा रही हैं और देश के अनेक विश्वविद्यालयों में उनके साहित्य पर अनेक शोध् कार्य हो चुके हैं और लगातार हो रहे हैं। मिश्र जी देश की अनेक साहित्यिक और अकादमिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किये जा चुके हैं। 21 अप्रैल 2007 को पटना में प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका "नई धारा" द्वारा तृतीय उदयराज सिंह स्मारक व्याख्यान तथा साहित्यकार सम्मान समारोह में प्रसिद्ध साहित्यकार उदयराज सिंह की धर्मपत्नी श्रीमती शीला सिन्हा ने डॉ॰ रामदरश मिश्र को "उदयराज सिंह स्मृति सम्मान" से सम्मानित किया। उनकी अनेक कृतियाँ पुरस्कृत हुई हैं। ये अनेक साहित्यिक, अकादमिक और सामाजिक संस्थाओं के अध्यक्ष रह चुके हैं। कई लघु पत्रिकाओं के सलाहकार संपादक रह चुके हैं।
परिवार
स्व. सरस्वती मिश्र (धर्मपत्नी) सरस्वती के उपासक रामदरश मिश्र के जीवन में एक नया मोड़ भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के एक वर्ष बाद आया जब 5 जुलाई 1948 में 24 वर्ष की आयु में इनका विवाह सरस्वती मिश्र से हुआ। सरस्वती मिश्र इनके जीवन में साक्षात सरस्वती रूप में आईं। इनके साहित्य की प्रथम पाठिका बनी । विवाह के तीन वर्ष बाद 1951 में रामदरश मिश्र का पहला काव्य संग्रह ‘पथ के गीत’ प्रकाशित हुआ। मिश्र जी स्वयं बताते हैं कि सरस्वती जी इनकी पत्नी से अधिक इनकी मित्र की तरह साथ रहीं। 5 जुलाई 2023को इनकी वैवाहिक वर्षगाँठ की 75 वीं वर्षगाँठ मनाई गई । 3 दिसंबर 2023 को सरस्वती जी का देहावसान होने तक इनकी सहचारी मित्र तथा प्रथम पाठिका के तौर पर साथ रहीं। विवाह के समय में वे केवल सातवीं कक्षा तक की पढ़ीं थी । उसके बाद एम्.ए. तक की शिक्षा मिश्रजी ने ही संपन्न कराई । मिश्र जी ने सरस्वती जी को केंद्र में रखकर अनेक कविताएँ तो लिखी ही ,उनके जीवन पर केंद्रित एक उपन्यास ‘एक बचपन यह भी’लिखा ।
स्व.हेमंत मिश्र (जयेष्ठ पुत्र) मिश्र जी के सबसे बड़े पुत्र हेमंत मिश्र राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय में स्नातक होने के पश्चात् रंगमंच और दूरदर्शन धारावाहिकों के चर्चित कलाकार रहे ।अनेक फिल्मों में भी कार्य किया किन्तु इनकी पहचान रंगमंच और दूरदर्शन धारावाहिकों से बनी । देश के पहले धारावाहिक ‘हम लोग’ हो या ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक का विलोम,सभी में इनके अभिनय की प्रशंसा हुई । इनके असमय निधन के पश्चात् मिश्र जी ने इन पर केन्द्रित ‘एक था कलाकार’उपन्यास लिखा ।
प्रो.स्मिता मिश्र (कनिष्ठ पुत्री) जब रामदरश मिश्र जी दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज में पढ़ा रहे थे तब उनके जीवन में एक नया मोड़, एक नया उल्लास 21 जुलाई 1966 को उनकी सबसे छोटी पुत्री के रूप में आया। बचपन से ही पिता के सबसे नज़दीक रही स्मिता मिश्र उनकी लाडली बेटी तथा उनके साहित्य की प्रथम पाठिका भी रही हैं। अपने पिता के साहित्य को सबसे ज्यादा नज़दीक से देखने, पढ़ने, और समझने में वे अन्य संतानों से आगे रही हैं। संभवतः इसी साहित्यिक वातावरण के कारण स्मिता मिश्र स्वयं भी एक सूक्ष्म आलोचक और साहित्यकार बन सकी। रामदरश मिश्र की 14 खण्डो की रचनावाली सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन उन्होंने किया है। वर्तमान में डॉ स्मिता मिश्र दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज में प्रोफ़ेसर पद पर कार्यरत हैं।


साहित्यिक उपलब्धियाँ
- 1. रचनाओं का देश की प्रायः सभी भाषाओं में अनुवाद।
- 2. अनेक विश्वविद्यालयों तथा विद्यालयों के पाठ्यक्रम में रचनाएँ।
- 3. देश के अनेक विश्वविद्यालयों में 300 से अधिक पीएच.डी. एवं एम.फिल. शोधकार्य।
- 4. रचनाओं पर कई समीक्षात्मक ग्रंथ प्रकाशित।
- 5 अनेक पत्रिकाओं के विशेषांक प्रकाशित
रामदरश मिश्र के साहित्य पर समीक्षा पुस्तकें
रामदरश मिश्र के विपुल साहित्य पर तीन सौ से अधिक शोध कार्य हो चुके हैं और साठ के लगभग आलोचनात्मक पुस्तकें विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखी जा चुकी हैं।

बूँद-बूँद साहित्य गढ़ा
बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे
“शताब्दी के सहयात्री हिंदी रचनाकार प्रो.रामदरश मिश्र की लंबी सृजन यात्रा में 32 कविता संग्रह, 15 उपन्यास 30 कथा संग्रह, साहित्यिक आलोचना की 15 पुस्तकें, 4 निबंध संग्रह, यात्रा वृतांत, संस्मरण ,डायरी आदि विधाओं से संबंधित पुस्तकें प्रकाशित हुईं। उनके साहित्य को देश-विदेश के पाठकों का अपार प्रेम तो मिला ही, साथ ही अनेक सम्मानित पुरस्कार भी प्राप्त हुए, जिनमें प्रमुख हैं -सरस्वती सम्मान ,साहित्य अकादमी सम्मान, भारत -भारती सम्मान, व्यास सम्मान, शलाका पुरस्कार इत्यादि!”
प्रमुख पुरस्कार
- 1. सरस्वती सम्मान (2021) -के. के. बिरला फाउंडेशन | 2. साहित्य अकादमी (2015) | 3. भारत भारती सम्मान (2005) - उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ | 4. शलाका सम्मान (2001) - हिंदी अकादमी, दिल्ली | 5. व्यास सम्मान (2011) - के. के. बिरला फाउंडेशन | 6. उदयराज सिंह स्मृति सम्मान (2007) - नई धारा, पटना | 7. विश्व हिंदी सम्मान (2015) –विश्व हिंदी सम्मलेन | 8. शान ए हिंदी खिताब (2017) - साहित्योत्सव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र | 9. महापंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान (2004) - केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा | 10. दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान (1998) | 11. डॉ. रामविलास शर्मा सम्मान (2003) - आल इंडिया कान्फ्रेन्स ऑफ़ इंटलेक्चुएल्स, आगरा चैप्टर | 12. साहित्य वाचस्पति (2008) - हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग | 13. साहित्य भूषण सम्मान (1996) - उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ | 14. साहित्यकार सम्मान (1984) - हिंदी अकादमी, दिल्ली | 15. नागरी प्रचारिणी सभा सम्मान, आगरा (1996) | 16. अक्षरम शिखर सम्मान (2008) - दिल्ली | 17. राष्ट्रीय साहित्यिक पुरस्कार (2012) - श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इंदौर | 18. प्रभात शास्त्री सम्मान (2018) - हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग | 19. साहित्य शिरोमणि सम्मान (2018) - अखिल भारतीय स्वतंत्र लेखक मंच | 20. पूर्वांचल साहित्य सम्मान (2005) दिल्ली | 21. सारस्वत सम्मान (2006) - समन्वय, सहारनपुर |