खाली घर (1968)

खाली घर (1968)
कहानी संबंधी आंदोलन के घेरे के बाहर वाले जिन कहानीकारों ने आधुनिक हिंदी कहानी साहित्य को प्रतिष्ठा दी है उनमें रामदरश मिश्र प्रमुख हैं। देश के शोषित पीड़ित लोगों के संघर्ष को मिश्र जी ने अपनी अधिकांश कहानियों की पृष्ठभूमि बनाया है। इसलिए यह कहना बहुत सही लगता है कि उनकी कहानियों की संवेदना में नकली तेवर नहीं यथार्थ का भीतरी नाद है और शिल्प में छद्म नवीनता के स्थान पर संवेदना के अनुकूल सहज प्रयोगधर्मिता है।
रामदरश मिश्र द्वारा लिखित 'खाली घर' उनका प्रथम कहानी संग्रह है । रामदरश मिश्र अपने अनुभव के आधार पर प्रामाणिक जीवन की सार्थक तस्वीर पाठक के सामने प्रस्तुत करते हैं ।रामदरश मिश्र की कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता है कि उनको पढ़ते ही पाठक को इस बात का विश्वास हो जाता है कि लेखक का सब कुछ भोगा हुआ है, एक-एक पीड़ा का उसने साक्षात्कार किया है। यही तत्व व्यक्त अनुभव को पाठक के लिए इतना आत्मीय बना देता है कि लेखक के प्रति वह सहज विश्वासी हो जाता है। रामदरश मिश्र मूलतः कवि हैं इसलिए जब वे कथा लेखन में आते हैं तो उनके अनुभव की आत्मीयता बहुत गहरी हो जाती है ,भाषा अधिक सूक्ष्म और व्यंजन पूर्ण हो जाती है ।
गाँव और शहर के दोनों संदर्भों से जुड़े जीवन की व्यथा, व्यवस्था और संघर्ष को प्रामाणिक रूप में चित्रित कर सकने में रामदरश जी को सफलता मिली है। उनके कहानीकार व्यक्तित्व को वहीं पर स्पष्ट पहचाना जा सकता है कि किस तरह से व्यवस्था से संबंध टूटे जा रहे हैं और उसे टूटने से दर्द किस प्रकार अभिशाप की तरह जीवन को भरता जा रहा है। इस ट्रेजेडी की सही पहचान रामदरश जी में है।जैसे 'चिट्ठियों के बीच' कहानी को लिया जा सकता है । शहर में कमाता हुआ एक व्यक्ति शहर की सारी महँगाई और परेशानी को झेलते हुए गांव में अपने परिवार के कुछ सदस्यों के लिए भी जिम्मेदार है। बाढ़, सूखा, पाला खेती को नष्ट करते हैं । इधर शहर में महंगाई तंग करती है। दोनों ओर से जिम्मेदार व्यक्ति तड़पता है, खीझता है और लगातार एक तनाव में जिंदगी से जूझने की कोशिश करता है। इन मजबूरियों का जैसा एहसास रामदरश मिश्र के कहानीकार व्यक्तित्व को है वैसा शायद बहुत कम लोगों को हो।
वास्तव में इसमें आंचलिकता और ग्राम कथानक से आगे की सर्वथा मौलिक मुद्रा ग्राम दिशा के परिप्रेक्ष्य में लक्षित हो रही है। अपनी मिट्टी से जुड़ने की इसकी छटपटाहट से भरी भंगिमा अपूर्व है। इस भंगिमा का परिणाम है ग्राम बोध और नगर बोध की अनुभूतियों की आंतरिक स्तर पर टकराहट ।'चिट्ठियों के बीच’ के डॉक्टर देव में दोहरे बोध की पीड़ा स्पष्ट है। डॉ देव सोचता है कि तमाम संबंधों से गुथे परिवार को ढोना पुराना बोध है ,सड़ा बोध है, लेकिन जब घर से पत्र आता है कि बाढ़ से खेत बह गए,मकान गिर गया तो वह हिल जाता है।
इस संग्रह में ‘सीमा’ भी एक महत्वपूर्ण कहानी है यह एक अपंग लड़की के पीड़ा भरी जीवन से संबंधित है ।रामदरश जी की कहानियों में अभिशप्त चरित्र की वेदना का उभरना एक विशेष प्रवृत्ति को लक्षित करता है। किसी भी कारण जो शारीरिक दृष्टि से अक्षम और पंगु है अथवा भावनात्मक दृष्टि से जीने के सदमा पहुंचा है, उनकी पीड़ा की बड़ी सघन अभिव्यक्ति हुई है।‘भटकी हुई मुलाकात’ कहानी संबंधों में विच्छेद की कहानी है।
वस्तुतः रामदरश मिश्र का जो लेखन है वह एक ऐसी जिंदगी का चित्रण करता है जिनको जीने वाले लोग पुराने मूल्यों में विश्वास रखते हैं या उनके प्रतिरोध में मोह है लेकिन परिस्थितियों के बीच उन मूल्यों के टूटने का दर्द नसों में झेल भी रहे हैं जीवन के इसी दुविधा भाव इसी पीड़ा को रामदरश मिश्र ने इस कहानी संग्रह में अभिव्यक्त किया है । आर्थिक स्थिति से टूटे हुए संबंधों को उजागर करती है तो दूसरी ओर शुद्ध भावात्मक संबंधों में तनाव को ‘खाली घर’ नामक कहानी व्यक्त करती है। गाँव की टूटन और उसकी अकाल स्थिति पर लिखी 'खंडहर की आवाज' और 'मां सन्नाटा और बजता हुआ रेडियो' शीर्षक कहानियों में यही सत्य है। लाल हथेलियां ,पिता, एक भटकी हुई मुलाकात, एक और यात्रा अनेक सशक्त कहानियों से समृद्ध मिश्र जी का प्रथम कहानी संग्रह हिंदी कथा साहित्य में मील का पत्थर है।