उत्तर पथ

उत्तर पथ
Author | रामदरश मिश्र |
Year of Issue | 1991 |
Publication Name | परमेश्वरी प्रकाशन |
Link | बी -109,प्रीत विहार, दिल्ली-110092 |
Description
सरल-सहज, सीधी-सादी, आडम्बर-विहीन भाषा में अपनी बात कह जाने में माहिर गोरखपुर अंचल के प्रख्यात हिन्दी कथाकार श्री रामदरश मिश्र ने हिन्दी- साहित्य को अनेक मूल्यवान् कृतियाँ देकर समृद्ध किया है। अपनी सभी रचनाओं में अपने अनुभूत और भोगे हुए यथार्थ तथा सामाजिकार्थिक घटनाओं का बहुत ही बारीकी से चित्रण करना उनकी निजी विशेषता है। मिश्र जी की रचनाओं में संसार की बनती-बिगड़ती स्थितियों, मानव जीवन के उत्थान-पतन और संघर्षों से दो-चार होती जिन्दगी का अंकन विस्तृत फलक पर हुआ है। अपने इर्द-गिर्द और समाज के परिवेश को अपनी कलम से हूचहू आँक देना उन्हें बखूबी आता है।
विगत कुछ वर्षों में थोड़े-थोड़े अन्तराल के बाद मिश्रजी ने अपनी आत्मकथा के रूप में 'जिन्दगी का सफ़रनामा' तीन खंडों - क्रमशः 'जहाँ मैं खड़ा हूँ', 'रोशनी की पगडंडियाँ', 'टूटते बनते दिन' में प्रस्तुत किया है। इन कृतियों में उन्होंने अपने आपको ज्यों का त्यों अनावृत करने का प्रयास किया है। और यदि कहीं कुछ अनकहा-अनुद्घाटित रह गया था तो उसे चौथे खंड 'उत्तर पथ' में उतार दिया है।
और अन्त में इस पूरे सफ़रनामे को मिश्रजी ने 'सहचर है समय' में समवेत रूप में देकर आत्मकथा-लेखन में अनूठा प्रयोग किया है, जिसके लिए उनकी अलग पहचान कायम होगी। पाठक उन्हें अपने और निकट अनुभव करेंगे और एक विचित्र-सी गुदगुदाने वाली आत्मीयता भी पाएँगे ।