आते जाते दिन
Description
रामदरश मिश्र ने अनेक विधाओं में अपनी और अपने परिवेश की जिन्दगी को रूपायित किया है। इन दिनों वे डायरी के साथ हैं। डायरी में इनका स्व भी है, पर भी है, यात्राएँ भी हैं, गोष्ठियाँ भी हैं, आलोचना भी है, कविता भी है, कथा भी है, प्रश्न भी हैं, उन पर चिंतन भी है, क्षण भी है, पहर भी है और सभी कुछ सहज भाव से है। यह वह डायरी नहीं है जिसमें कोई निजी रहस्य दर्ज किया जाता है या परिवार के लोगों तथा मित्रों के संबंध में अपने अप्रिय विचारों या कुत्सा को व्यक्त करके छिपा लिया जाता है और चाहा जाता है कि उसे लिखने वाले के मरने के बाद प्रकाशित किया जाय। यह डायरी तो. वह डायरी है जो लिखी जाने की प्रक्रिया में ही सबको पढ़ने के लिए परोसी जाती है। अंततः यह एक रचना है जो पाठकों के लिए लिखी गयी है। अतः इसमें व्यक्त - वैयक्तिक्ता का भी एक सामाजिक स्वर है। इस डायरी में दैनिक कार्यक्रमों की श्रृंखला बनी हुई है। कोई आता है, बतियाता है, सुख-दुःख का आदान-प्रदान होता है, नये सवाल उठते हैं, नये उत्तर निकलते हैं, समकालीन वातावरण के रंग उभरते हैं, कभी-कभी कहीं जाना पड़ता है और उस जाने के साथ मौसम होता है, रास्तों के दृश्य होते हैं, जहाँ जाना होता है उसका सामाजिक सांस्कृतिक परिदृश्य होता है। कभी-कभी आदमी यों ही बैठा रहता है और उसके मन में यों ही चुपचापं कितना कुछ आता-जाता रहता है-चित्र-विचित्र कल्पनाएँ सोच-विचार की तरंगें, समाज में घटित प्रसंगों पर सुखात्मक-दुःखात्मक प्रतिक्रियाएँ, परिवार की चिंताएँ, उसमें व्याप्त प्रिय-अप्रिय क्रिया-व्यापारों की प्रतिध्वनियाँ...। तो इस डायरी में यह सभी कुछ है-बहुत अनौपचारिक रूप से।