छायावाद का रचनालोक

छायावाद का रचनालोक

Author रामदरश मिश्र
Year of Issue 2009
Publication Name वाणी प्रकाशन
Link https://www.vaniprakashan.com/home/product_view/3733/Chhayavad-Ka-Rachanalok

Description

प्राचीन काल में शाप चाहे जिसे भी खाता रहा हो, आजकल तो वह शाप देने वाले को ही खा बैठता है क्योंकि शाप को कुछ खाना चाहिए। जिस पर शाप छोड़ा गया है वह बलवान है। अतः शाप दूना भूखा होकर शाप देने वाले पर टूट पड़ता है। छायावाद को शाप देने वालों ने छायावाद का बड़ा मज़ाक उड़ाया है। उन्होंने समझा कि वह काव्य-वंश में कोई बड़ा ही विचित्र बालक पैदा हो गया है, जो पंखों वाला है, जो जन्म से ही आकाश में ताकता है, जो दूध और पानी पीने के स्थान पर आँसू पीता है, जो पैदा होते ही शून्य की, असीम की बहकी-बहकी बातें करता है और जो माँ की गोद छोड़कर पंखों पर उड़-उड़ कर अनन्त में विलास कर रहा है।कवि सम्राट सुमित्रानन्दन पन्त कहते हैं: "छायावाद का प्रधान गुण है- अस्पष्टता। भाव इतने अस्पष्ट हो जाएँ कि वे कल्पना के अनन्त गर्भ में लीन हो जाएँ। मेरी ये सम्मति है कि शब्द अक्षरों से बनते हैं और अक्षर अविनाशी हैं, अज्ञेय हैं, अनन्त हैं। अतएव हमें भाषा को वह रूप देना चाहिए जिससे वह नीरव हो जाए। वह कर्णश्रुत न होकर हृदयगम्य हो, इन्द्रियगोचर न होकर आत्मा से ग्राह्य हो।"डॉ. नगेन्द्र ने छायावादी काव्य की मूल प्रेरणा की व्याख्या करते हुए लिखा है- "वास्तव पर अन्तर्मुखी दृष्टि डालते हुए उसको वायवीय अथवा अतीन्द्रिय रूप देने की यह प्रवृत्ति ही छायावाद की मूल वृत्ति है। उसकी सभी अन्य प्रवृत्तियों की इसी अन्तर्मुखी वायवीय वृत्ति के आधार पर व्याख्या की जा सकती है।"