हिंदी कहानी: अंतरंग पहचान

हिंदी कहानी: अंतरंग पहचान

Author रामदरश मिश्र
Year of Issue 2014
Publication Name वाणी प्रकाशन
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Description

हिन्दी कहानी की नब्बे वर्षों की यह यात्रा बहुत महत्त्वपूर्ण कही जा सकती है। परिवेशगत यथार्थ के साथ गहरी संपुक्ति, प्रवृत्तिगत वैविध्य और कलात्मक उपलब्धि, सभी दृष्टियों से यह यात्रा आश्वस्तिकारी है। मनोरंजन के साधन के रूप में ली जाने वाली कहानी भारतीय संदर्भ में सदैव मानवीय उद्देश्य से प्रेरित रही। सचेत स्तर पर भले ही इधर आकर कहानी विधा को जटिल यथार्थ की अभिव्यक्ति का साधन बनाया गया हो किंतु भारतीय साहित्य में सहज ही वह वृहत्तर उद्देश्य से प्रेरित रही है। वह मानव और मानवेतर पात्रों के माध्यम से मानव जीवन के सत्यों को उद्घाटित करती हुई ग्राह्य और त्याज्य का विवेक पैदा करती रही है।अपने आधुनिक रूप में कहानी निश्चित ही पश्चिम से आयी है किन्तु हिन्दी कहानी ने केवल इसके रूप को लिया चेतना या संवेदना अपने समाज से ही ग्रहण की। प्रेमचंद-पूर्व की कहानियों को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता किन्तु उनमें भारतीय जीवन के आदर्शों की आहट स्पष्ट है।यद्यपि पश्चिम और पूरब में अन्य विधाओं की तरह कहानी को भी परिभाषाओं में बांधने की कोशिश की गयी है और उसे कुछ तत्त्वों में विभाजित कर उसके शिल्प को सामान्यीकृत करने की कोशिश की गयी है किन्तु वह बंधी नहीं। कथा साहित्य अपने आधुनिक रूप में नयी विधा है। नाटक और कविता को अपेक्षा उसकी शिल्पगत संभावनाएं अधिक खुली हुई हैं, दूसरे यह वह जनसामान्य के जीवन-यथार्थ से जुड़ी हुई विधा है।जनसामान्य का जीवन-यथार्थ एक तो अपने आप में बहुआयामी है, दूसरे निरंतर विकसित होता रहता है। इसलिए कथाकार के सामने इस यथार्थ से संवाद करने वाले शिल्प के निर्माण की चुनौती बराबर बनी होती है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने बहुत पहले इस सत्य को पहचान लिया था और उन्होंने प्रेमचंद की कहानियों में कहानी की नयी संभावनाएं पहचानते हुए उन्हें पश्चिमी कहानियों से अलग किया था।रोज नये-नये प्रयोगों को देखकर लुभा जाने वाला और लेखक विशेष के संदर्भ में शिल्प के, तथा लेखक विशेष के संदर्भ में संवेदना के सौन्दर्य का समर्थन करने के लिए विकृत तर्कवाद का शिकार हो जाने वाला आलोचक संवेदना और शिल्प के सही संबंधों की पहचान करने कराने के स्थान पर उसके बीच नकली फासला ही बनता है।