रामदरश मिश्र: एक अन्तर्यात्रा

रामदरश मिश्र: एक अन्तर्यात्रा
Author | प्रकाश मनु |
Year of Issue | 2004 |
Publication Name | वाणी प्रकाशन |
Link | https://www.amazon.in/-/hi/Prakash-Manu/dp/8181432088 |
Description
एक बड़े लेखक का सादा, निरभिमानी चेहरा
रामदरश मिश्र हमारे समय के 'बड़े' और गंभीर लेखक हैं। कविता, कहानी, उपन्यास, लेख, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत- समकालीन साहित्य की शायद ही कोई विधा हो, जिसमें उन्होंने 'महत्त्वपूर्ण' लिखकर अपने ढंग से सार्थक हस्तक्षेप न किया हो। यह सचमुच किसी विलक्षण सुख की तरह लगता है कि 'न लिखने' के बहाने तलाशने वाले आज के युग में, लेखन की करीब करीब 'सिद्धावस्था' तक पहुँचने के बावजूद, उनमें कुछ नया लिखने और रच पाने का एकदम बच्चों जैसा निर्मल उत्साह नजर आता है।
रामदरश जी के बारे में जब भी बात करें, एक गाँव के आदमी की सहज सादगी या गँवई गंध सबसे पहले आकर रास्ता रोककर खड़ी हो जाती है। जैसे वह उँगली उठाकर यह बता देना चाहती हो कि रामदरश जी दिल्ली के होकर भी, सबसे पहले तो गाँव के हैं। इतने बरस दिल्ली में रहने के बाद भी वे अपने कुछ-कुछ ग्रामीण चेहरे के साथ, लेखकों की भीड़ में दूर से पहचान में आ जाते हैं-अपनी सीधी, तनी हुई देह-यष्टि, बगैर उलझाव वाले अकुंठ व्यक्तित्व और प्रफुल्ल आत्मीयता भरी मुस्कान के कारण, जो बात करने के लिए निरंतर न्योतती है। रामदरश जी के व्यक्तित्व ही नहीं, उनके विपुल रचना-संसार में भी यह अकृत्रिम गँवईपन व्याप्त है, जो उन्हें प्रेमचंदीय 'कलाहीनता की कला' की एक बड़ी हिंदुस्तानी परंपरा से जोड़ता है।
रामदरश जी भले ही उन लेखकों में नहीं जो चर्चा में रहने के 'गुर' जानते हैं और इस लिहाज से लिखना जिन्हें सबसे फिजूल कर्म लगता है, लेकिन असाधारण धुनी लेखक रामदरश मिश्र अपने जीवन और लेखन के बल पर वहाँ जरूर पहुँचे हैं, जहाँ पहुँचना किसी लेखक का सबसे बड़ा सपना होता है।
बरसों से रामदरश जी के निकट रहे कवि-कथाकार प्रकाश मनु की पुस्तक 'रामदरश मिश्र एक अंतर्यात्रा' उनकी अनेक सादा, पुरअसर छवियों को एक साथ सँजोने के साथ साथ, इस बड़े रचनाकार को देखने की एक नई 'आँख' और लीक से हटकर एक अलग 'भाष्य' भी उपस्थित करती है। इसमे गहरी आत्मीयता से लिखे गए लंबे, भाव विद्ध संस्मरण और खासे अतरंग इंटरव्यू के साथ साथ, रामदरश जी की रचनाओं पर लिखे गए लेख और बेबाक आलोचनात्मक टिप्पणियाँ भी शामिल हैं। उम्मीद है, रामदरश जी के भीतर छिपकर बैठे 'एक और अलक्षित रामदरश मिश्र' को पाठकों के आगे ला सकने में यह पुस्तक काफी हद तक कामयाब होगी।