हिंदी उपन्यास के सौ वर्ष
Description
लाला श्रीनिवास दास के समय में हिन्दी उपन्यास का जो बीज रोपा गया था, वह आज एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका है। प्रेमचंद, जैनेन्द्र, यशपाल, नागार्जुन, रेणु आदि महान प्रतिभाओं के स्पर्श ने हिन्दी उपन्यास को न केवल समृद्ध किया है अपितु उसे अपनी जमीन से जुड़ी हुई, 'केन्द्रीय विद्या' का सम्मान भी प्राप्त कराया है। हिन्दी उपन्यास की शतक यात्रा का गंभीर विवेचन और मुल्यांकन करने वाला यह ग्रंथ इसी कड़ी में एक सहयोगी प्रयास है। हिन्दी काव्यालोचन से जुड़े वरिष्ठ और प्रौढ़ समालोचकों ने हिंन्दी उपन्यास की विभिन्न प्रवृत्तियों को रेखांकित करते हुए इसकी उपलब्धि और सीमा का समुचित आकलन किया है। इसमें संभवतुः पहली बारे हिन्दी के प्रतिनिधि उपन्यासकारों का विशद और तलस्पर्शी मूल्यांकन हुआ है। समूचे हिंदी उपन्यास के स्वभाव, शक्ति और सीमा को समग्रतः आंकने की एक ईमानदार कोशिश के रूप में यह पंथ अपनी अलग पहचान रखता है।