मेरे गीत

मेरे गीत
Author | रामदरश मिश्र |
Year of Issue | 2003 |
Publication Name | नमन प्रकाशन |
Link | http://www.printsasia.com/book/%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a5%87-%e0%a4%97%e0%a5%80%e0%a4%a4-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a4%b6-%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%b0-8181290135-9788181290137?AspxAutoDetectCookieSupport=1 |
Description
रामदरश मिश्र के गीत अपनी व्यापक आवेगशीलता में जिस आत्मीयतापूर्ण और अंतरंग जगत् की रचना करते हैं उसमें व्यापक जन-जीवन की आशा-निराशा के हल्के-गहरे रंग बड़ी सहजता और कलात्मक अनुशासन के साथ घुल-मिल जाते हैं। उसमें व्यक्ति की आत्म-स्थितियों का उद्घाटन तो रहता ही है साथ ही जन-संकुलता का भाव भी समाहित रहता है। व्यक्ति मन और व्यापक जन-जीवन के बीच खड़ी की गयी दीवार जिसने नयी कविता के चरित्र को दूर तक प्रभावित किया था मिश्र जी की अनुभूति की आंच में गलकर ढह जाती है या फिर वह इतनी पारदर्शी बन जाती है कि वहां अंतर-बाह्य का द्वैत महसूस नहीं होता। मिश्र जी के गीतों में जहाँ एक ओर 'नयी कविता' की व्यक्ति-संवेदना की एकनिष्ठता है वहीं दूसरी ओर प्रगतिवाद की सामाजिक चेतना का अनुभवात्मक विस्तार भी है। यही कारण है कि वे अपने गीतों में जहाँ आधुनिकता की चुनौतियों का सामना करते हैं-नगर-बोध, आत्म-निर्वासन और एकाकीपन की पीड़ा के रूप में वहीं आर्थिक, सामाजिक स्तर पर मानव-मुक्ति के लिए चलने वाले उस ऐतिहासिक संघर्ष के साथ जुड़े होने का एहसास भी जगाते हैं जिनको अनदेखा, अनचीन्हा छोड़ देना अपने आपको अप्रासंगिक बना लेना है।
जीवन अपनी समग्रता में एक इकाई है। मिश्र जी अपने गीतों द्वारा उस संमग्रता को खोजते और परिभाषित करते हैं। लेकिन इसके लिए उन्हें कोई अतिरिक्त प्रयत्न नहीं करना पड़ता। शब्द में रची-बसी लोक-जीवन की स्मृतियों को वे अपने गीतों में कुछ इस ढंग से नियोजित करते हैं कि उनकी भाषा जीवन के एक से अधिक स्तरों को छूने लगती है। इनका जीवन-बोध अपनी रचनात्मकता में सांस्कृतिक बोध का पर्याय बन जाता है। उसमें लोक-संस्कृति के आदिम राग बोध के तत्त्व अपनी पूरी ऐन्द्रिक उत्तेजना के साथ घुल-मिल जाते हैं। ऋतुओं, पाँ, उत्सवों के प्रति उत्पन्न होने वाली भावाकुलता उनके शब्दों को अनुभवात्मक व्याप्ति प्रदान करती है। लेकिन गीत को आदिम आवेगों की अभिव्यक्ति तक मर्मादित कर देना मिश्र जी का अभिप्रेत नहीं है। उनका शब्द-संयोजन, उनका कला-विवेक वस्तुतः उनके मानवीय विवेक का ही बिम्बात्मक रूपांतरण है।