नदी बहती है

Description

प्रख्यात साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र ने नाटक के अतिरिक्त प्रायः सभी प्रमुख विधाओं में लिखा है। कविता से अपनी यात्रा शुरू कर आज तक शिद्दत से उसके साथ चलनेवाले मिश्रजी ने कथा (कहानी और उपन्यास) के क्षेत्र में भी विपुल साहित्य की रचना की है और कविता की तरह कथा भी उनकी प्रमुख विधा बन गई है। इसके अतिरिक्त इन्होंने बहुत से निबंध, यात्रा-वृत्तांत एवं संस्मरण भी लिखे हैं और इन विधाओं के क्षेत्र में भी अपनी प्रभावशाली पहचान बनाई है। इनकी आत्मकथा 'सहचर है समय' का अपना विशेष रंग और सौंदर्य है। उसकी गणना हिंदी की विशिष्ट आत्मकथाओं में होती है। आलोचना के क्षेत्र में भी इन्होंने काफी कुछ महत्त्वपूर्ण दिया है। भले ही ये अपने आलोचक की छवि को विशेष महत्त्व नहीं देते हों।

मिश्रजी की लगभग समग्र रचनाएँ चौदह खंडों में प्रकाशित हुई हैं। जाहिर है कि पाठकों को मिश्रजी के समूचे साहित्य से गुजरना सरल प्रतीत नहीं होता होगा। इसलिए यह आवश्यक समझा गया कि उनके समस्त सर्जनात्मक लेखन में से कुछ विशिष्ट रचनाओं का चयन करके पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया जाए, ताकि पाठक थोड़े में एक साथ मिश्रजी की रचनात्मक यात्रा का साक्षात्कार कर सकें। उन्हें इनकी रचनात्मक व्याप्ति का अनुभव तो हो ही, विशिष्टताओं तथा उपलब्धियों की प्रतीति भी हो।

अतः अलग-अलग दो संकलनों 'दर्द की हँसी' तथा 'नदी बहती है' में उनकी कुछ चुनी हुई रचनाएँ प्रस्तुत की जा रही हैं। हाँ, इनमें उपन्यास- अंश नहीं है। उपन्यास पूरे पढ़े जाने चाहिए।