जल टूटता हुआ

जल टूटता हुआ

Author रामदरश मिश्र
Year of Issue
Publication Name वाणी प्रकाशन
Link https://www.vaniprakashan.com/home/product_view/3854/Jal-Tootta-Hua

Description

पुस्तक के कुछ अंश: एक दिन बाबूजी बौखलाए हुए आए... देखो न इस मास्टर की हिमाकत, मेरी लड़की से शादी करेगा। यह मुँह मसूर की दाल... मैंने यहाँ उसकी नौकरी लगाई, लोगों के उपद्रव के बावजूद उसे यहाँ लगाये रखने की बार-बार कोशिश की तो इसका मन बढ़ गया। मैंने अपनी लड़की को थोड़ा पढ़ा देने को कहा तो समझता है कि मैंने अपनी लड़की ही दे दी उसे। कमीना, जिस पत्तल में खाता है उसी में छेद करता है... हेंह, शादी करेंगे मेरी लड़की से ! शीशे में मुँह नहीं देखा है। मेरी शारदा से शादी करेंगे, दरिद्र कहीं के। घर का बेंवत नहीं देखते। डेढ़ सौ रुपल्ली पाते हैं। वो भी मेरी मरजी से तो मेरी बेटी से शादी पर उतारू हो गये।... पाठक-साठक कोई बाम्हन होते हैं, 'बभने में नान्ह जात पाठक उपधिया'। मैं नहीं जानता था कि ये मेरी बेटी को पढ़ाते हैं तो बदले में मेरी बेटी ही मांग लेंगे। पढ़ाया है तो फीस ले लें। फीस देने की बात कही थी तो लगा था आदर्श झाड़ने, मैं नहीं जानता था कि यह सारा आदर्श इसलिए है। अब स्कूल से निकलवाता हूँ और ऐसी चिट्ठी लिखता हूँ कि बच्चू याद करेंगे।

 

मास्टर सुग्गन तिवारी का पाँव जोर से फिसला, कीचड़ में गिरे और उनका सपना टूट गया ! आज 15 अगस्त है, आजादी की वर्षगाँठ ! सुग्गन तिवारी-पड़ोसी गाँव-भाटपार के प्राइमरी स्कूल में हेडमास्टर हैं। स्कूल इंस्पेक्टर का आदेश है कि आजादी की वर्षगाँठ बड़ी शान से मनाई जाए। मास्टर सुग्गन ने कल स्कूल के सारे लड़कों को तीन बार आदेश दिया था कि कल साफ कपड़े पहनकर आना। टोपी जरूर लगा लेना-नंगे सिर आना असभ्यता है और टोपी तो देश की इज्जत है। अगर लोगों ने टोपी ही उतार दी तो क्या बचेगा ? कल राष्ट्रीय पर्व है, सभी लोग हँसी-खुशी के साथ आना।