एक कहानी लगातार

एक कहानी लगातार

Author रामदरश मिश्र
Year of Issue 1997
Publication Name प्रभात प्रकाशन
Link https://www.amazon.in/-/hi/Ram-Darash-Mishra/dp/9352660765

Description

माँ मुसकराई। लगा जैसे दर्द से मुसकरा रही हो। बोली- 'बेटे, बहुत कुछ मिलता है। और मुझे तो यह चुभ रहा है कि तुम मेरे बेटे होकर यह सबकुछ कह रहे हो। मैंने तुम्हें यह संस्कार तो नहीं देना चाहा था। तुम्हें इन गंदे गरीबों से इतनी घिन है तो इनका इलाज कैसे करोगे ?'

 

'इलाज की बात और है, माँ। ये मेरे यहाँ आएँगे तो भगा तो नहीं दूंगा। मुझे तो जो भी फीस देगा, उसका इलाज करूँगा।'

 

'मगर वे तुम्हारी फीस कहाँ से दे पाएँगे ? इसलिए वे वैसे भी तुम्हारे पास नहीं आएँगे !'

 

'ठीक कहती हो, माँ !'

 

'हाँ, लेकिन तुम ठीक नहीं कह रहे हो।'

 

'क्या, माँ ?'

 

'वही, जो तुम कह रहे हो। जानते हो, इस देश में कितनी बड़ी संख्या है इन अभागों की ? क्या उच्च शिक्षित लोगों का इनके प्रति कोई दायित्व नहीं होता ? डॉक्टर इनका इलाज न करें, वकील इनका केस न लड़ें, शिक्षक इन्हें पढ़ाएँ नहीं, नेता और अफसर इन्हें अपने पास न फटकने दें, पुलिसवाले इन्हें कीड़े-मकोड़ों से बदतर समझें तो इनका क्या होगा ? पैसेवाले इन्हें गरीबी और गंदगी में झोंककर सारी सुख- सुविधाओं पर कुंडली मारे बैठे हैं। आखिर यह कब तक चलेगा ? क्या इनके घावों पर फाहा रखने का दायित्व हम लोगों का नहीं होता ?'

 

'वाह माँ, तुम तो कवि हो गई हो। लेकिन आज कविता से काम नहीं चलता। और जिन्हें तुम गरीब कह रही हो, उनकी झुग्गियों में जाकर देखो, वहाँ क्या नहीं.'

 

- इसी पुस्तक से