बैरंग बेनाम चिट्ठियाँ
Description
"कब से, यह बैरंग बेनाम चिट्ठी लिये हुए यह डाकिया दर-दर घूम रहा है! कोई नहीं वारिस इस चिट्ठी का। कौन जाने किसका अनकहा दर्द किसके नाम इस बन्द लिफाफे में पत्ते की तरह काँप रहा है? मैं ने भी तो एक बैरंग चिट्ठी छोड़ी है पता नहीं किसके नाम ? शायद वह भी इसी तरह सतरों के ओठों में अपने दर्द कसे यहाँ वहाँ घूम रही होगी।" -इसी पुस्तक से