रामदरश मिश्र

"मेरा साहित्य परिवेश और समय के सत्य से प्रभावित है"

रामदरश मिश्र ने अपनी रचना यात्रा कविता से शुरू की किंतु कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उनकी उपस्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। छठे और सातवें दशक में मिश्र जी का प्रथम कविता संग्रह ‘पथ के गीत’(1951), प्रथम उपन्यास पानी के प्राचीर (1961) और पहला कहानी संग्रह ‘खाली घर’ (1968) प्रकाशित होते हैं। मिश्र जी किसी भी वाद से न जुड़कर अपने समय की चेतना के प्रवाह के साथ स्वतः ही चलते रहे। वे मूलतः अभिशप्त जीवन के पक्षधर लेखक हैं। अतः इनके लेखन में नारी और दलित यातना के अनेक आयाम सहज रूप से मूर्त हुए हैं।

प्रथम कविता संग्रह

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“पथ के गीत”
मिश्र जी शुरू से ही कविताएँ लिखते थे । उन्होंने जब काफी कविताएँ लिख ली और उन्हें लगा कि इन कविताओं का स्तर प्रभावशाली हो गया है तो उन्हें पुस्तकाकार प्रकाशित करने की इच्छा के परिणाम स्वरुप 1951 में ‘पथ के गीत’ कविता-संग्रह आया। यह पहला संग्रह छायावादी प्रभाव के दौर की कविताओं का है। इसीलिए इसका स्वर मुख्यतः रोमानी तो है, किन्तु इसमें मनुष्य के जीवन के साथ-साथ समाज और राष्ट्र की समस्याओं पर भी विचार किया गया है। संग्रह की कविताओं में प्रेम और प्रकृति -राग के स्वरों के साथ-साथ सामजिक और राष्ट्रीय चेतना को भी स्वर मिले हैं।

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प्रथम कहानी संग्रह

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“खाली घर”
छठे दशक से मिश्र जी कहानी लेखन में प्रवृत्त हुए और सातवें दशक से गहरे से जुड़ गए ।प्रथम कहानी संग्रह 'खाली घर' (1968) की कहानियाँ गाँव और शहर की जिंदगी के तनाव, संघर्ष, टूटन-छूटन आदि स्थितियों को चित्रित करने वाली हैं। ‘चिट्ठियों के बीच’, ‘खाली घर’, ‘मंगल यात्रा’,सीमा ,चिट्ठियों के बीच, ‘बादलों भरा दिन’ ‘एक औरत एक जिंदगी’ आदि कहानियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं। उनमें मौत की छाया और सूनेपन की अभिव्यंजना, अंधविश्वासों का खंडन, शहरी जीवन की यांत्रिकता, तनाव, घुटन अबला का सबलापन आदि बहुत मार्मिक ढंग से चित्रित हुए हैं।

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प्रथम उपन्यास

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“पानी के प्राचीर”
मिश्र जी के लेखन में ग्राम जीवन की प्रधानता रही। जब 'मैला आंचल' प्रकाशित हुआ,तब उन्हें लगा कि जिस गांव के यथार्थ को वह फुटकर रूप में अभिव्यक्त कर रहे हैं, उसे समग्र और संश्लिष्ट रूप दिया जा सकता है। परिणाम स्वरुप पानी के प्राचीर (1961)की रचना हुई। यह स्वतंत्रता-पूर्व से स्वतंत्रता -प्राप्ति तक के भारतीय गाँव की प्रामाणिक गाथा प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास में गाँव के जीवन के संश्लिष्ट यथार्थ को बहुत गहराई तथा कलात्मकता से चित्रित किया गया है। गाँव की कथा में गीतात्मक लय की उपस्थिति उपन्यास को काव्यात्मक सांकेतिकता तथा नाटकीय वक्रता प्रदान करती है।

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रामदरश मिश्र

प्रमुख रचनाएँ

“रामदरश मिश्र मूलतः कवि हैं किन्तु इनका लेखन कविता के साथ- साथ सहज भाव से साहित्य की अन्य विधाओं में भी उतरता गया। मिश्रजी ने स्वयं कहा कि- मैं कविता के साथ कहानी में आया फिर उपन्यास में। वैसे तो कविता उनकी केंद्रीय विधा है ही किंतु छठे दशक में वे कथा साहित्य के लेखन से भी जुड़ गए । मिश्र जी ने पानी के प्राचीर, जल टूटता हुआ, अपने लोग, दूसरा घर जैसे बड़े उपन्यास सहित 11 लघु उपन्यास भी लिखे । ‘पानी के प्राचीर’ से लेकर ‘एक था कलाकार’ तक की उपन्यास यात्रा ने उन्हें प्रतिष्ठित उपन्यासकारों की पंक्ति में खड़ा कर दिया । मिश्र जी की कहानियाँ उनके व्यापक अनुभवों की अभिव्यक्ति है। उनका बचपन गाँव में बीता, फिर उच्च शिक्षा तथा नौकरी के संदर्भ में शहर- शहर यात्रा करते रहे,इसलिए उन्हें गांव और शहर दोनों के जीवन यथार्थ की गहरी पहचान है। ‘खाली घर’ से लेकर ‘जिंदगी लौट आई थी’ तक की एक लंबी कहानी यात्रा उन्होंने की है। मिश्र जी ने इन तीन केंद्रीय विधाओं के अतिरिक्त निबंध, संस्मरण, यात्रा -वृतांत, आलोचना, आत्मकथा आदि भी लिखे हैं और इनका अवदान कम महत्वपूर्ण नहीं है । उनकी आत्मकथा ‘सहचर है समय ’हिंदी के श्रेष्ठ आत्मकथाओं में सम्मिलित होती है।”

आग की हँसी

कविता संग्रह

जल टूटता हुआ

उपन्यास

"मैं किसी वाद का झंडा लेकर नहीं चला "

“मैं गमले का फूल तो नहीं/कि एक सुरक्षित कमरे से/दूसरे कमरे में रख दिया जाऊँँ/मैं तो पेड़ हूँ एक खास जमीन में उगा हुआ/आँधियाँ आती हैं/लुएँ चलती हैं /ओले गिरते हैं।/पेड़ हहराता है, काँपता है/डालियाँ और फल-फूल टूटते हैं / लेकिन वह हर बार अपने में लौट आता है! मेरा कवि अंतर्राष्ट्रीय बनने के लिए कभी गमले का फूल नहीं बना। मेरा अपना एक देश है, गाँव हैं। जहाँ के रूप, रंग, रस, भूख-प्यास और संघर्ष उसने बीस-पच्चीस वर्ष बहुत गहराई से अपने खून में उतारा है। तो क्या अपने परिवेश को अधिक गहराई और ईमानदारी से पहचान लेना विश्व मानव को पहचान लेना नहीं होता!”

श्रेणी

"नई सूचना"

पद्मश्री सम्मान प्राप्त करने पर हार्दिक बधाई

2025-01-25

डॉ. रामदरश मिश्रा जी को वर्ष 2025 में साहित्य के क्षेत्र में पद्मश्री सम्मान प्राप्त करने पर हार्दिक बधाई! आपकी लेखनी ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है और समाज को प्रेरणा दी है। आपकी सरल भाषा, गहन विचार और मानवीय संवेदनाएं पाठकों के हृदय को छूती हैं। यह सम्मान न केवल आपकी अद्वितीय साहित्यिक साधना का प्रतिफल है, बल्कि पूरे हिंदी साहित्य जगत के लिए गर्व का क्षण है। आपको कोटि-कोटि शुभकामनाएं! 🌹📖

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"गुरुवर हजारीप्रसाद द्विवेदी ने मुझे कहा था कि सर्जना ही बड़ा सत्य है।"

समीक्षकों की राय

'अपने लोग', पढ़ गया हूँ। गोरखपुर को बहाना बनाकर तुमने इस समूचे पूर्वांचल को जीवंत रूप में चित्रित कर दिया है । इसके पात्र बिलकुल परिचित जान पड़ते है। यथार्थवादी दृष्टि से इसके प्रत्येक पक्ष को देखा गया है और फिर भी सहानुभूति संवेदना सर्वत्र विद्यमान है। कमाल है! संज्ञा जैसे पात्र की सृष्टि करके तुमने मानवी के रूप में एक ऐसी देवी को चित्रित किया है जिसे साधारणतः यथार्थवादी लोग भूल जाया करते है। शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र की स्वार्थपरता अत्यंत स्पष्ट होकर उभरी है। इस प्रदेश के सांस्कृतिक धरातल का पलायन भी प्रकट हो गया है। सन 60 के आस पास की चारित्रिक शिथिलिता को इतने यथार्थ और जीवंत रूप में शायद अन्यत्र कहीं चित्रित नहीं किया गया। तुमने निस्संदेह एक बड़े अभाव की पूर्ति की है। मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। मेरी बधाई स्वीकार करो।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
प्रख्यात उपन्यासकार ,निबंधकार एवं रामदरश मिश्र के गुरु

'अपने लोग' उपन्यास वर्तमान जीवन का महाकाव्य है। इसने मुझे हर स्तर पर झकझोरा है। इसका प्रत्येक पात्र अविस्मरणीय है। पात्र और संदर्भ छोटे हो या बड़े सभी बहुत प्रभावित करते हैं।

विष्णु प्रभाकर 
विख्यात कथाकार

देश के पिछड़े इलाकों में विभिन्न वर्गों का, समसामयिक जीवन के कटु यथार्थ का, स्वार्थ पर आधारित शहर और गांव के टूटते रिश्तों का, विभिन्न स्तरों पर टूटती बिखरती युवा पीढ़ी का जितना विशद् चित्रण इस उपन्यास में है उतना हिंदी के अन्य किसी समसामयिक उपन्यास में नहीं है।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
प्रख्यात कवि

रामदरश मिश्र मूलतः गांधीवादी हैं और समाजवादी विचारों से गहरे प्रभावित हैं .कथाकार रामदरश मिश्र के सृजन व्यापार में मूल धन गांधीवाद है और समाजवाद अनेक स्तरीय बढ़ोतरी के साथ ब्याज रूप में आया है.यह ब्याज चिंतन राष्ट्रीयता और मान्यता की अपनी जमीन से जुड़ा होता है .अतः उनके उपन्यासों में मुखौटावादी कम्युनिस्टों की निंदा की गई है.

विवेकी राय
हिन्दी और भोजपुरी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार

गोरखपुरिया रामदरश में ब्राह्मण विनयन के साथ-साथ एक पुरबिया की जो सामूहिक ग्राम्य ग्रंथि है वही उनके आंचलिक उपन्यासों की कुंजी तथा अईयारी की जड़ी भी है । शायद दिल्ली के उन दंभी, नामी गरामी लोगों के बीच में आज भी उपेक्षित और वनवासी जैसे होंगे जो तथाकथित एलिट तथा सर्व सभा चतुर है। तथा भी रामदरश नई लघु पत्रिकाओं तथा नव लेखन और युवा लेखकों से जिस अद्भुत ढंग से तादात्म्य करते चले आए हैं वह उन्हें सदैव चिर युवा तथा नित्य नवीन बनाए हुए हैं ।

रमेश कुंतल मेघ
हिंदी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार व समालोचक

राम दरश मिश्र अपने सभी उपन्यासों के कथा बंद वर्तमान से लेते हैं वह वर्तमान जिनकी नस-नस वह एक सजग लेखक की हैसियत से पहचानते हैं। दृश्य, समस्या, जीवन की जटिलता एवं परिवर्तन की विविधता को वर्तमान के फलक पर रूपायित करने में लेखक को जोखिम उठाना पड़ता है। इस दिशा में रामदरश मिश्र के उपन्यास देखे जा सकते हैं ।

डॉ ललित शुक्ल
प्रसिद्ध कथाकार

संबंध और सही का पक्षधर काव्य विवेक रामदरश मिश्र के अनुभव की खास पहचान है। यह संबंध चेतन प्रबल मानवीय वस्तु है जो उनके काव्य विवेक का निर्माण करती है। इस चेतन की जड़ें बहुत गहरी होती है जो जीवन और व्यक्तित्व के स्थानांतरण की सुविधा नहीं देती। यह एक खास देश और काल में होने की व्यवस्था है जो कई तरह के प्रलोभनों से कवि रामदरश मिश्र को बचाती है।

डॉ नित्यानंद तिवारी
विख्यात समालोचक

सामाजिक उपन्यास के रूप में 'अपने लोग' सफल और विशिष्ट उपन्यास है। बी.लाल जैसे जटिल अंतर्द्वंद्व और अंतर विरोधों से ग्रस्त चरित्र का निर्माण हिंदी कथा साहित्य की उपलब्धि है। अनेक पात्रों के चित्रण में रामदरश मिश्र ने उत्कृष्ट कथा शिल्प,व्यापक मानवीय संवेदना, समझ और संयम का परिचय दिया है।

डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी
ख्यातिलब्ध आलोचक, उपन्यासकार

मिश्र जी एक ऐसे रचनाकार हैं जिनकी जीवनी उनके काव्य को व्याख्यायित करने में व्यवधान नहीं बनती, प्रावधान बन सकती है। पारदर्शी व्यक्तित्व की तरह उनके काव्य शिल्प में भी खुलापन है । मिश्र जी के काव्य बिंब पांचो इंद्रियों और छह ऋतुओं का उत्सव बनकर आते हैं। गंध और स्पर्श के अनुभव भी इंद्रियां गोचर होते हैं।

पद्मश्री रघुवीर चौधरी
ज्ञानपीठ पुरस्कृत गुजराती साहित्यकार

गोरखपुरिया रामदरश में ब्राह्मण विनयन के साथ-साथ एक पुरबिया की जो सामूहिक ग्राम्य ग्रंथि है वही उनके आंचलिक उपन्यासों की कुंजी तथा अईयारी की जड़ी भी है । शायद दिल्ली के उन दंभी, नामी गरामी लोगों के बीच में आज भी उपेक्षित और वनवासी जैसे होंगे जो तथाकथित एलिट तथा सर्व सभा चतुर है। तथा भी रामदरश नई लघु पत्रिकाओं तथा नव लेखन और युवा लेखकों से जिस अद्भुत ढंग से तादात्म्य करते चले आए हैं वह उन्हें सदैव चिर युवा तथा नित्य नवीन बनाए हुए हैं ।

रमेश कुंतल मेघ
हिंदी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार व समालोचक

रामदरश मिश्र ऐसे लेखक हैं जिन्होंने एक लंबी रचना यात्रा में कविता, कहानी, उपन्यास और अन्य कई विधाओं में लिखा है और अपनी पहचान बनाई है । वह एक लंबे अरसे से निरंतर लिख रहे हैं, उनकी सृजनात्मक प्रवृत्तियां और मनोदृष्टियां रचनाओं में प्रतिबिंबित हो चुकी हैं । उनकी सृजनात्मक का ताप सभी विधाओं में एक सब महसूस किया जा सकता है ।

डॉ नरेंद्र मोहन
प्रतिष्ठित कवि, नाटककार

रामदरश जी का व्यक्तित्व हो या रचनाएं उनकी विशेषता ही यही है कि उनमें बनावट कम से कम है और सहजता ही उसका प्राण है। उनकी हर रचना एक सीधे साधे लेकिन संवेदना में गहरी धँसे आदमी का बयान है। इसके अलावा जो चीज उनकी सबसे ज्यादा भाती है वह है गहरी लयबद्ध तल्लीनता। वह हड़बड़ी या उतावली में शायद ही कुछ करते हो। सामने जो प्रस्तुत क्षण है उसी को पूरे मन से जीते हैं।

प्रकाश मनु
सुप्रसिद्ध साहित्यकार, संपादक और बच्चों के प्रिय लेखक

रामदरश मिश्र की कविताओं में विश्वबंधुता है, वंचितों, यतीमों के लिए आत्मीयता है, विराट का स्पंदन है, जीवन के एक-एक पल को जीने की चाहत है। इसीलिए उनकी तमाम कविताएँ जो एकरैखिक हैं, वे भी क्षणों को जैसे मन से जीने का उपक्रम हैं। वे एक कौंध, एक पुलक, एक बिम्ब से भी कविता रच लेते हैं इसलिए कभी-कभी यह जरूर लगता है कि इस कविता में आखिर क्या है जो इसे कविता बनाती है किन्तु यह कहना होगा कि वह पुलक, वह कौंध, वह सुख, वह विषाद, वह विडंबना, वह विपर्यय बोध, कोई न कोई सवाल, प्रश्नाकुलता उनकी हर कविता के बनने के पीछे के महत्वपूर्ण कारक हैं और यह भी कि वे खाँटी गृहस्थ कवि हैं--- यह कहते में गर्व का अनुभव करते हुए कि हम पूरब से आए हैं।

ओम निश्चल
गायक, कवि और आलोचक

अपने पहले उपन्यास 'पानी के प्राचीर' से लेकर अब तक के सबसे नए उपन्यास 'एक था कलाकार' तक की यात्रा में रामदरश मिश्र जी जीवन संदर्भों की प्रामाणिक पहचान के साथ-साथ अपने मूल्य बोध के लिए जाने गए हैं । उनके कथा साहित्य में प्रामाणिक स्थितियां है, जीवन चरित्र है , प्रासंगिक विचार हैं लेकिन सर्वोपरि मानवीय मूल्यों को गौरवान्वित करने वाली जीवन दृष्टि है, जिसकी दीप्ति न केवल उनके उपन्यासों बल्कि समग्र साहित्य को सार्थक, पठनीय और विचारणीय बनाती है।

डॉ वेदप्रकाश अमिताभ
प्रसिद्ध आलोचक एवं कथाकार

रामदरश मिश्र जी गंवई गुलाब हैं । उन का विविधमुखी साहित्य गुलाब की एक-एक पंखुड़ी है जो अकेले और समूह में एक जैसी गंध देती है। ये वह गुलाब है जिसके बारे में शेक्सपियर ने कभी रोमियो जूलियट में कहा था कि गुलाब को किसी नाम से पुकारें वे वैसा ही मधुर और सुंगधित होगा जैसा वह है। रामदरश मिश्र नामक इस गंवई गुलाब में उनके जैसे सहज लोगों के लिए मधुरता है तो मानवीय मूल्यों के विरोधियों के लिए कांटे भी हैं। यही कारण है कि उनकी नजर विडम्बनाओं पर भी टिकती है और उनपर व्यंग्य करने को विवश करती है।

प्रेम जनमेजय
व्यंगकार

डॉ रामदरश मिश्र किन्हीं समीक्षकों या आलोचकों के मोहताज नहीं हैं। बल्कि कई बार तो उनके साहित्य की गहराई और ऊँचाई के आगे उनके आलोचक स्वयं बौने नजर आते हैं। कविता, कहानी, उपन्यास, समीक्षा, निबन्ध, यात्रा वर्णन, संस्मरण, आत्मकथा....साहित्य की कोई भी विधा हो, उन्होंने हमेशा ज़मीन से जुड़कर लिखा है। उनकी हरियाली का राज़ उनकी जड़ों में छिपा है। उनके 'साधारण' में 'असाधारण' का दर्शन है। वे आज भी सहज हैं, सजग हैं, सचेत हैं-तन से भी, मन से भी बुद्धि से भी... और आत्मा से भी।

नरेश शांडिल्य
प्रसिद्ध कवि एवं दोहाकार

सहज जीवन मूल्यों से संबंधित अपने लोग उपन्यास सच्चे अर्थ में सामाजिक उपन्यास है जिसकी सामाजिक चेतना ओढ़ी हुई या राजनीतिक मतवाद से प्रेरित न होकर लेखक की अनुभूति का अभिन्न अंग है। सर्जना के स्तर पर 'अपने लोग' की विशेषता है अपने आसपास के लोगों के चरित्र चित्रण की सहज क्षमता। इन लोगों के बहिरंग और अंतरंग व्यक्तित्व के साथ लेखक का घनिष्ठ परिचय है और बड़े हल्के हाथ से उनकी मूर्तियों का निर्माण किया गया है।

डॉ नगेंद्र
विख्यात आलोचक

राम दरश मिश्र मानवीयता के कवि हैं, जीवन का राग गाने वाले कवि हैं,प्रकृति और परिवेश के कवि हैं, स्थल तत्व की सटीक पहचान के कवि हैं, गांव के कवि हैं तो महानगर महानगर के भी कवि हैं,अपने अतीत- व्यतीत के प्रति नॉस्टैल्जिक कवि हैं तो अपने समकाल की धड़कन और वहां होने वाले परिवर्तन के भी कवि हैं। वे महानायकों के नहीं बल्कि अनेक जीवंत पात्रों के और अपने आसपास के आम लोगों की सार्थक उपस्थिति के कवि हैं। वे अनेक विधाओं के समर्थ साहित्यकार होने के बावजूद अपनी प्रकृति और प्रवृत्ति से मूलतः कवि हैं। उनकी कविता की मूलभूत पहचान उनकी कविताएं है उनका कवित्व है जो किसी भी कविता के होने की बुनियादी विशेषता है।

पांडेय शशि भूषण शीतान्शु
पांडेय शशि भूषण शीतान्शु

राम दरश मिश्र की आठ दशक से अधिक रचना यात्रा में जिंदगी और साहित्य में न जाने कितने बदलाव हुए किंतु मिश्र जी सधे हुए कदमों से चुपचाप अपनी राह आगे बढ़ते रहे। निरर्थक बहसों में उलझे बिना वह भीतर की कविता को शब्दों में डालते रहे और यह कोई आसान काम नहीं है। ग्रंथियां और कुंठाओं से सर्वथा मुक्त रचनाकार ही ऐसा कर सकता है ।उसके लिए लोक हृदय के साथ तादात्म्य अपेक्षित है जिसका सामर्थ्य स्वच्छ एवं निर्मल हृदय से ही आता है। जो रचनाकार ऐसा कर लेता है उसे समकालीनता, युगबोध प्रगतिशीलता, आधुनिकता या विविध प्रकार के विमर्शों की तख्ती लटकाने की जरूरत नहीं होती। उनकी रचनाओं में लोक अपने आप सारे बदलावों एवं नित्य नव नवीन भंगिमा के साथ अनायास प्रतिबिंबित होता रहता है।

जितेंद्रनाथ मिश्र
संपादक 'सोच विचार'

राम दरश मिश्र का सुदीर्घ रचना संसार विधागत विविधताओं से परिपूर्ण है। गीत ,गजल ,कविता, यात्रा संस्मरण, कहानी, उपन्यास से होते हुए इन दोनों मिश्र जी की आसक्ति छोटे-छोटे मुक्तकों के प्रति बनी हुई है। उनका मानना है कि जीवन यात्रा के नवें दशक के उत्तरार्ध में लंबी रचनाओं के बदले छोटे-छोटे मुक्तकों ने मुक्त भाव से उनका हाथ पकड़ा तो वह लिखते चले गए और छोटी-छोटी कविताओं एवं डायरी के साथ मुक्तक भी इन दोनों मिश्र जी की अभिव्यक्ति का माध्यम बन गए हैं। 'धूप के टुकड़े,'मिश्र जी का सद्य प्रकाशित मुक्तक संग्रह है जहां मिश्र जी ने थोड़े शब्दों में एक व्यापक दायरे को समेटा है।

अलका सिन्हा
प्रसिद्ध कवयित्री एवं कथाकार

रामदरश मिश्र ऐसे लेखक हैं जिन्होंने एक लंबी रचना यात्रा में कविता, कहानी, उपन्यास और अन्य कई विधाओं में लिखा है और अपनी पहचान बनाई है । वह एक लंबे अरसे से निरंतर लिख रहे हैं, उनकी सृजनात्मक प्रवृत्तियां और मनोदृष्टियां रचनाओं में प्रतिबिंबित हो चुकी हैं । उनकी सृजनात्मक का ताप सभी विधाओं में एक सब महसूस किया जा सकता है ।

डॉ नरेंद्र मोहन
प्रतिष्ठित कवि, नाटककार

राम दरश मिश्र अपने सभी उपन्यासों के कथा बंद वर्तमान से लेते हैं वह वर्तमान जिनकी नस-नस वह एक सजग लेखक की हैसियत से पहचानते हैं। दृश्य, समस्या, जीवन की जटिलता एवं परिवर्तन की विविधता को वर्तमान के फलक पर रूपायित करने में लेखक को जोखिम उठाना पड़ता है। इस दिशा में रामदरश मिश्र के उपन्यास देखे जा सकते हैं ।

डॉ ललित शुक्ल
प्रसिद्ध कथाकार

แจกเครดิตฟรี สล็อต บาคาร่า คาสิโนออนไลน์ JQK41 शताब्दी पुरुष परम श्रद्धेय गुरुवर के ऋषितुल्य अद्भुत व्यक्तित्व एवं साहित्यिक प्रदेय के प्रति नतमस्तक हूं। उनकी अप्रतिहत जिजीविषा, उनका आत्मबल, उनकी सतत सृजनशीलता निसंदेह अनुकरणीय है। 'आम के पत्ते' कविता संग्रह में प्रकाशित उनकी 'सूर्य ' कविता उनकी जीवन दृष्टि को प्रतिबिंबित करती है जिसमें वे सूर्यास्त के बाद माचिस में दुबकी एक तीली से यह कहलाते हैं कि निराश न हो मेरे भाई,सूर्य नहीं तो क्या हुआ। मैं तो हूं न। और वह तीली जलकर दीये की लौ बन जाती है। फिर दीप से दीप जलते चले जाते हैं। यही तो है वह अटूट आस्था और विश्वास, यही तो है वह संबल जो उनके स्नेहल ऊर्जावान व्यक्तित्व के सान्निध्य में हर किसी को सहज ही उपलब्ध हो जाता है। आज के समय में मिश्र जी जैसा निश्छल व्यक्तित्व मिलना दुर्लभ है।

प्रो सविता मिश्र
चर्चित कवयित्री एवं समीक्षक

สล็อตออนไลน์ เครดิตโบนัสได้เงินจริง slot938 At the age of about 100 years, Ram Darash Mishraji is still associated with the art of communicating realities of life with ease through his literary genius. With full of diversity, freshness, liveliness, his every work has proved to be a milestone in his long literary journey.

Dr. Ved Mitra Shukla
प्रसिद्ध कवि, लेखक, एसोसिएट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय

เว็บพนันอันดับ1 HUC99 เว็บตรง ไม่ผ่านเอเย่นต์ साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं व्यक्ति और समाज का अनवेषण करते हुए चलता है। आचार्य राम दरश मिश्र जी के साहित्य में समाज का अन्वेषण है। उनके उपन्यास, कव्य कृतियाँ कालजयी हैं। उनकी लेखनी में अद्भुत सर्जनात्मक शक्ति है। डॉ. मिश्र जी की रचनाओं में जीवन का वास्तविक रूप दृष्टिगत होता है, चाहे ग्रामीण जीवन का चित्र हो अथवा नगरीय संस्कृति हो, दोनों जीवंत हो उठा है। उनके विचारों में स्वाभाविक प्रगतिशीलता है, जीवन दर्शन है, किन्तु वह किसी वाद से प्रेरित नहीं है। उनकी रचनाओं के केंद्र में मनुष्य और समाज है, वाद नहीं।

प्रो कलानाथ मिश्र
प्रसिद्ध कवि,समीक्षक एवं संपादक- साहित्य यात्रा

แทงบอล ซอคเกอร์ลีก คะแนนฟุตบอล रामदरश मिश्र जी का कृतित्व और व्यक्तित्व हिंदी जगत के लिए ही नहीं, अन्य भाषाओं के रचनाकारों एवं पाठकों के लिए प्रेरक है। उन्हें पांच दशकों से अनवरत लिखते-पढ़ते और अपने से युवतर पीढ़ी को प्रोत्साहित करते देखना मेरे लिए एक अनूठा अनुभव है। उनकी सादगी, सरलता और अनुशासित जीवन ने ही उन्हें एक अप्रतिम उदाहरण बनाया है। उनकी रचना-वीथि से नई पीढ़ी धैर्य और संलग्नता का भुला दिया गया अनिवार्य पाठ सीख सकती है।

महेश दर्पण
विख्यात कथा आलोचक

kubet ไทยคาสิโนออนไลน์ राम दरश मिश्र हिन्दी साहित्य के शीर्ष पुरुष हैं।उनका साहित्य किसी भी विचारधारा से आक्रांत नहीं है बल्कि वे अपने लेखन में विचारधारा का सर्जनात्मक उपयोग करते हैं।उनका पूरा साहित्य मनुष्यता का पक्षधर है।गांव से शहर तक की यात्रा ने उनके अनुभव लोक को समृद्ध किया है और वही समृद्धि हमें उनके साहित्य में भी मिलती है। सौ साल जीना महत्वपूर्ण है लेकिन उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है सक्रिय रूप से जीना।वे आज भी साहित्य में सक्रिय हैं और हम सबके लिए एक प्रेरक व्यक्तित्व।

प्रताप सहगल
प्रसिद्ध नाटककार

สล็อต เครดิตฟรี ไทยคาสิโนออนไลน์ thaibet55 डॉ. रामदरश मिश्र ऐसे विरल साहित्यकार हैं, जिनका जीवन एवं लेखन सरलता, सहजता तथा विस्तार की दृष्टि से आदर्श है। पाखंडों, प्रपंचों, उखाड़-पछाड़ से दूर-दूर तक संबंध न रखने वाले डॉ. मिश्र जी स्वयं ज़मीन से जुड़े रहे हैं तथा अपने विपुल साहित्य को भी ज़मीन से जोड़े रखा है।उनकी कहानियाँ और उपन्यास रूढ़ियों से प्रगतिशीलता की ओर की यात्रा हैं तो कविताएँ सूक्ष्म अनुभूतियों एवं अवलोकनों का स्पंदन। हिंदी साहित्य में छोटी-छोटी चीजों के साथ खड़े रहकर इतना बड़ा साहित्यकार बनने वाले कम हुए हैं। सरल ढंग से जिया गया उच्च जीवन क्या और कैसा होता है, यह मिश्र जी के साहित्य को पढ़कर समझा जा सकता है। डॉ. रामदरश मिश्र के किसी भी संग्रह से गुजरना एक गहन एवं विस्तृत कालखंड से आमने-सामने बतियाना होता है।

हरिशंकर राढी
प्रसिद्ध व्यंग्यकार

राम दरश मिश्र के लिए जीवन कर्म और जिजीविषा का पर्याय है। उनके समग्र लेखन उनके जीवन को स्पष्ट करता है। जीवन संग्राम के जीवंत योद्धा, उदार अलमस्त मानव, प्रगतिशील विचारक, बहुश्रुत, बहुपठित अध्यापक, कविता ग़ज़ल-लेखो -निबंधों कविताओं ,कहानियों, उपन्यासों आदि के सर्जक- सबको मिलकर जो व्यक्तित्व बनता है उसका नाम है डॉ रामदरश मिश्र।

डॉ फूलबदन यादव
प्रसिद्ध उपन्यासकार, आलोचक

สล็อต สล็อตออนไลน์ thaicasinobin मुझे याद है कि कक्षा में वे शोध-प्रविधि पर इतना नहीं, जितना कविता की रचनात्मकता को केंद्र में रख कर बोले थे। उनकी वाणी का उजाला मुझे अपने अंदर ज्यादा दूर तक जाता हुआ दिखाई दिया। शब्दाडंबर के स्थान पर एक बहुत सहज ग्राम्य-गंध के साथ इंसानियत की ईमानदार पैरोकारिता नज़र आई। ग्रामीण अंचल का अनुभवों से पका गहरा ज्ञान रखने वाला, एक जीवंत महामानव मुझे दिखाई दिया। राष्ट्रीय एकता, देशभिमान, उदारता, धर्म-निरपेक्षता, स्वतन्त्रता, सत्यवादिता, प्रगतिशीलता का मिलाजुला मर्म उनकी वाणी से छलक रहा था। छायावाद पर उनके विचार मुझे प्रगतिशील दीप्ति से भरे हुए लगे। मैंने मन ही मन उन्हें गुरु धारण कर लिया।

अशोक चक्रधर
सुप्रसिद्ध लेखक व हास्य कवि

ขอเครดิตฟรีหน่อยครับสมัครปุ๊บรับปั๊บไม่ต้องฝาก डॉ.रामदरश मिश्र जी बहुमुखी प्रतिभा के मूर्धन्य शताब्दी-साहित्यकार हैं।उन्होंने विपुल साहित्य सृजन किया है।आधुनिक हिंदी साहित्य के क्षेत्र में कविता,कहानी,उपन्यास,निबंध,संस्मरण,यात्रा-वृत्तान्त,आलोचना,गीत-ग़ज़ल,डायरी,पत्र आदि विधाओं में लेखन करने वाले संभवत वे अकेले साहित्यकार हैं।

प्रो.जसवीर त्यागी
राजधानी कॉलेज दिल्ली विश्विद्यालय
मीडिया

भेंट वार्ता

उपन्यासः पानी के प्राचीर, जल टूटता हुआ, सूखता हुआ तालाब, अपने लोग, रात का सफर, आकाश की छत, आदिम राग,बिना दरवाजे का मकान, दूसरा घर, थकी हुई सुबह, बीस बरस, परिवार, बचपन भास्कर का, एक बचपन यह भी, एक था कलाकार।